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हमारे आस-पास के पदार्थ – Class 9 science chapter 1 in hindi notes
पदार्थ : वे सभी वस्तुएँ जिनका द्रव्यमान होता है और जो स्थान घेरती है, पदार्थ कहलाती है |
अथवा
विश्व में प्रत्येक वस्तु जिस सामग्री से बनी है , उसे पदार्थ कहा जाता है और हमारे आस – पास विद्यमान हर वस्तु में पदार्थ है ।
- सभी पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने हैं |
- पदार्थ के कण इतने छोटे होते है कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते है | उदहारण : पोटैशियम परमैगनेट का एक छोटा कण को यदि एक गिलास पानी में डाल दिया जय तो यह पुरे गिलास को रंगीन बना देता है, अर्थात एक छोटा कण गिलास में पानी के जितने कण है उतने भागों में विभाजित हो जाता है और सभी कणों के साथ मिल जाता है, तो आप अंदाजा लगाइए कि पदार्थ के कण कितने छोटे होते है |
पदार्थ के कणों की विशेषताएँ:
- पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है |
- पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते है |
- पदार्थ के कण एक दुसरे को आकर्षित करते है |
1. पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है : कैसे नमक, शर्करा, डेटोल या पोटैशियम परमैगनेट जैसे पदार्थ असानी से जल के कणों के बीच मिल जाते है ? ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि पदार्थ के कणों के बीच पर्याप्त रिक्त स्थान होते है |
2. पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते हैं : पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते हैं, अर्थात उनमें गतिज ऊर्जा होती है | तापमान बढ़ने पर कणों की गति तेज हो जाती है, इसलिए हम कह सकते है कि तापमान बढ़ने से कणों की गतिज ऊर्जा भी बढ़ जाती है |
3. पदार्थ के कण एक दुसरे को आकर्षित करते है : पदार्थ के कणों के बीच एक बल कार्य करता है | यह बल कणों को एक दुसरे से बांधे रखता है | इस आकर्षण बल का सामर्थ्य अलग-अलग पदार्थों में अलग-अलग होता है | सबसे अधिक आकर्षक बल ठोस पदार्थों में होता है और सबसे कम गैसों में होता है | यही कारण है कि गैसों के कण कम आकर्षक बल के कारण फैले रहते है जबकि ठोस कठोरता से जुड़े रहते है |
पदार्थ की अवस्थाएँ : पदार्थ की तीन अवस्थाएँ है :
(i) ठोस, (ii) द्रव्य और (iii) गैस
किसी भी पदार्थ के अवस्थाओं का बनना : ठोस, द्रव और गैस ये तीनों अवस्थाएँ उसके कणों के विभिन्न विशेषताओं के कारण होता है | यदि जितने ही इनके कणों के बीच की दुरी बढ़ेगी और आकर्षण बल कम होगा, वे पदार्थ उतनी कम ठोस से द्रव और द्रव से गैस की ओर बढ़ता जायेगा |
ठोस का गुणधर्म:
- इनका निश्चित आकार तथा स्पष्ट सीमाएँ होती है |
- स्थिर आयतन अर्थात संपीड्यता नगण्य होती है |
- बाह्य बल लगने पर भी ठोस अपने आकार को बनाये रखता है |
- अंतराणुक बल ठोसों में द्रव तथा गैस से अधिक होता है |
द्रव के गुणधर्म:
- द्रव का निश्चित आकार नहीं होता है |
- इनका आयतन निश्चित होता है |
- द्रवों में बहाव होता है और इनका आकार बदलता रहता है |
- इनका अंतराणुक बल ठोस से कम होता है |
गैस के गुणधर्म :
- ठोसों एवं द्रवों की तुलना में गैसों की संपीड्यता (compression) काफी अधिक होता है |
- इनके कणों के बीच अंतराणुक बल सबसे कम होता है |
- गैसों को आसानी से दबाया जा सकता है |
- इनका विसरण काफी तीव्रता से होता है |
वाष्पीकरण
- वाष्पीकरण (Evaporation) : क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते है |
- वाष्पीकरण की प्रक्रिया (The process of Evaporation) : पदार्थ के कण हमेशा गतिशील होते है और कभी रुकते नहीं | एक निश्चित तापमान पर गैस, द्रव या गैस के कणों में विभिन्न मात्रा में गतिज ऊर्जा होती है | द्रवों में सतह पर स्थित कणों के कुछ अंशों में इतनी गतिज ऊर्जा होती है कि वे दुसरे कणों के आकर्षण बल से मुक्त हो जाते है, और धीरे-धीरे वाष्पीकृत होने लगता है |
- क्वथनांक (Boiling Point) : वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर कोई द्रव उबलने लगता है, वह तापमान उस द्रव का क्वथनांक कहलाता है | जैसे : जल 373 K अर्थात 100 oC तापमान पर उबलने लगता है, इसलिए जल का क्वथनांक 373 K है |
- गलनांक (Melting Point) : जिस तापमान पर ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, वह तापमान उस ठोस पदार्थ का गलनांक कहलाता है | जैसे : बर्फ का गलनांक 273.16 K है | अर्थात बर्फ 273.16 K ताप पर गलने लगता है |
- गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) : जब कोई पदार्थ गलने की प्रक्रिया के दौरान अपने गलनांक पर पहुंचता है तो इसे और अधिक ताप बढ़ाने के बाद भी यह तापमान में बिना किसी वृद्धि दर्शाए पदार्थ की अवस्था को बदलता रहता है | ऐसा पदार्थ द्वारा उस उष्मीय ऊर्जा को अवशोषित कर लेने के कारण होता है | यह ऊष्मा पदार्थ और बर्तन में छुपी रहती है | इसे ही गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) कहते है |
- संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Fussion) : वायुमंडलीय दाब पर 1 kg ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जीतनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुफ्त ऊष्मा कहते है |
जैसे – 0 oC (273 K) ताप पर जल के कणों की ऊर्जा उसी तापमान पर बर्फ के कणों की ऊर्जा से अधिक होती है | क्योंकि जल के कणों की ऊर्जा उसकी संगलन की गुप्त ऊष्मा होती है | जो जल के कणों द्वारा अवशोषित होती है |
- वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Evaporation) : वायुमंडलीय दाब पर 1 kg द्रव या गैस को उसके क्वथनांक पर वाष्पीकृत होने के लिए जितनी उष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वह ऊष्मा वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहलाता है |
ठीक इसी प्रकार 373 K (100 oC) तापमान पर भाप अर्थात वाष्प के कणों उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा होती है, ऐसा इसलिए है क्योंकि भाप के कण वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा के रूप में अतिरिक्त ऊष्मा अवशोषित कर लेता है |
वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक :
- सतह क्षेत्र बढ़ने पर :
- तापमान में वृद्धि :
- आर्द्रता में कमी :
- वायु की गति में वृद्धि :
- 1. सतह क्षेत्र बढ़ने पर : वाष्पीकरण एक सतही प्रक्रिया है, सतह बढ़ने से वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वाष्पीकरण के दौरान अधिक सतह मिलाने से पदार्थ के कणों को आस-पास से अधिक से अधिक ऊष्मा अवशोषित करने के लिए मिलता है जिससे कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है और वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है |
- 2. तापमान में वृद्धि : तापमान बढ़ने पर कणों को अधिक से अधिक गतिज ऊर्जा मिलती है जिससे वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है |
- 3. आर्द्रता में कमी : वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है | वायु में उपस्थित जलवाष्प के कणों की मात्रा उष्मीय ऊर्जा को कम करती है जिससे वाष्पीकरण की दर घट जाती है |
- 4. वायु की गति में वृद्धि : वायु के तेज होने से जलवाष्प के कण तेजी से वायु के साथ उड़ जाते है जिससे आस-पास के जलवाष्प की मात्रा घट जाती है और वाष्पीकरण असानी से होने लगता है |
वाष्पीकरण के कारण शीतलता : वाष्पीकरण के दौरान द्रव निरन्तर अपनी ऊर्जा खोता रहता है और इस खोई हुई ऊर्जा को पुन: प्राप्त करने के लिए द्रव के कण अपने आस-पास से ऊर्जा अवशोषित कर लेते है और वाष्पीकृत हो जाते है, जिससे आस-पास शीतलता आ जाती है | उदहारण : मिट्टी के घड़े में रखे पानी का ठंडा होना, हथेली पर इत्र, एसीटोन या पेट्रोल गिरने पर ठंडक महसूस होना, गर्मियों में कूलर से ठंडक होना आदि |
विसरण (Diffusion): दो विभिन्न पदार्थों के कणों का स्वत: मिलना विसरण कहलाता है |
विसरण एक प्रक्रिया है जिसमें पदार्थ के कण अपने आप ही एक दुसरे से अंत:मिश्रित हो जाते है | ऐसा कणों के रिक्त स्थानों में समावेश के कारण होता है |
ठोस, द्रव और गैस पदार्थ की ये अवस्थाएँ उसके कणों की विभिन्न विशेषताओं के कारण होता है |
- द्रवों में विसरण (Diffusion in Liquids): द्रव में ठोस, द्रव और गैस तीनों का विसरण संभव हैं | ठोसों की अपेक्षा द्रवों में विसरण की दर अधिक होती है | ऐसा इसलिए है क्योंकि द्रव अवस्था में पदार्थ के कण स्वतंत्र रूप से गति करते है और ठोस की अपेक्षा द्रव के कणों में रिक्त स्थान भी अधिक होता है |
- द्रवों में गैसों का विसरण : जलीय जीव जल में घुली ऑक्सीजन का उपयोग श्वास लेने के लिए करते है |
- गैसों में विसरण (Diffusion In Gases): गैसों में संपीड्यता ठोस एवं द्रव की अपेक्षा अधिक होती है | इनके कणों के बीच रिक्त स्थान अन्य अवस्थाओं की अपेक्षा अधिक होती है, और कणों के बीच आकर्षण बल भी काफी कम होता है | जिससे कणों की तेज गति और अत्यधिक रिक्त स्थान के कारण गैसों का अन्य गैसों में विसरण बहुत तीव्रता से होता है |
पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन :
पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन होने के कारण निम्न है :
- कणों के बीच रिक्त स्थान में कमी या वृद्धि अवस्था में परिवर्तन ला सकता है |
- यदि पदार्थ के कणों की गतिशीलता बढ़ा या घटा दी जाये तो अवस्था में परिवतन लाया जा सकता है |
- यदि पदार्थ के कणों के बीच आकर्षण बल को कम या अधिक कर दिया जाये तो पदर्थ की अवस्था में परिवर्तन लाया जा सकता है |
उपरोक्त सभी विन्दुओं से यह पता चलता है कि पदार्थ की अवस्थाओं में परिवर्तन उनके विभिन्न गुणों में परिवर्तन के कारण होता है | अब इन गुणों में परिवर्तन लाने वाले भौतिक कारक क्या हैं ?
पदार्थ के गुणों में परिवर्तन लाने वाले भौतिक कारक जिससे अवस्था में परिवर्तन होता है :
- तापमान
- दाब
1. तापमान : किसी भी अवस्था में यदि तापमान बढ़ाने पर पदार्थ के कणों की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) बढ़ जाती है | गतिज ऊर्जा में वृद्धि होने के कारण कण और अधिक गति से कम्पन अकरने लगते हैं | ऊष्मा के द्वारा प्रदान की गई ऊर्जा कणों के बीच के आकर्षण बल को पर कर लेती है | इस कारण कण अपने नियत स्थान छोड़कर अधिक स्वतंत्र होकर गति करने लगते हैं | फिर एक ऐसी अवस्था आती है, जब ठोस पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो जाता है |
विभिन्न तापों पर जल की भौतिक अवस्था :
(1) ठोस
अवस्था | तापमान | पदार्थ का नाम |
ठोस | 0o C | बर्फ |
तरल | 25o C | जल |
गैस | 100o C | जल-वाष्प |
2. दाब : हम ये जान चुके है कि पदार्थ के कणों के बीच की दुरी बढ़ने या घटने से पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन होता है | यदि किसी पदार्थ की अवस्था को परिवर्तित करना है तो दाब भी यही कार्य करता है | दाब बढ़ने या घटने से पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन आती है | जैसे -सिलिंडर में भरा गैस संपीडित (दाब ) करके बहुत अधिक मात्रा में गैसों को तरल रूप में एक छोटे से सिलिंडर में भरा जाता है |
तापमान और दाब पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन लाने के लिए उत्तरदायी है |
शुष्क बर्फ (Dry Ice) :- ठोस CO2 जिसे उच्च दाब पर रखा जाता है | अत्यधिक उच्च दाब में रखने के कारण ही यह ठोस अवस्था में रह पाता है, अन्यथा 1 एट्मोसफेअर वायुमंडलीय दाब पर ठोस कार्बोब डाइऑक्साइड द्रव अवस्था में आये बिना सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है | यही कारण है कि ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ (Dry Ice) भी कहते है |