इस अध्याय मे हम Bihar Board class 12 history chapter 9 notes in hindi – राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार बारे में पड़ेगे तथा हड़प्पा बासी लोगो के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर चर्चा करेंगे
राजा और विभिन्न वृतांत – class 12 history chapter 9 notes in hindi
मुगल कोन थे ?
- दो महान शासक वंशो के वंशज थे । माता की ओर से वे चीन और मध्य एशिया के मंगोल शासक चंगेज खाँ ( जिनकी मृत्यु 1227 ई० में हुई ) के उतराधिकारी थे । पिता की ओर से वे ईरान एव वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर ( जिनकी मृत्यु 1404 ई० में हुई ) के वंशज थे ।
- परन्तु मुगल अपने को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे । ऐसा इसलिए था क्योकि चंगेज खाँ से जुड़ी स्मृतियाँ मुगालो के प्रतियोगियो उजवेग से भी संबधित थी । दुसरी तरफ़ मुगल , तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे । ऐसा इसलिए क्योकि उनके इस महान पूर्वज ने 1398 ई० में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था ।
- मुगलो ने अपनी वंशावली का प्रर्दशन चित्र बनाकर किया । प्रत्येक मुगल शासक ने तैमूर के साथ अपना चित्र बनवाया । पहला मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज़ खाँ का संबधी था । वो तुर्की बोलता था और उसने मंगोलो का उपहास करते हुए उन्हें बर्बर गिरोह के रूप में उल्लेखित किया ।
- 16 वी शताब्दी के दौरान यूरोपीयो ने परिवार की इस शाखा के भारतीय शासको का वर्णन करने के लिए मुगल शब्द का प्रयोग किया । यहाँ तक कि रडयार्ड किपलिंग की ( जंगल बुक ) के युवा नायक मोगली का नाम भी इससे व्युत्पन्न हुआ है ।
- साम्राज्य के संस्थापक ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर को उसके मध्य ऐशियाई स्वदेश फरगना के प्रतिद्वंद्वी उज्बेगो ने भगा दिया था । नासिरुद्दीन हुमायूँ , शेरशाह सूर से पराजित होकर इरान के सफावी शासक के दरवार में निर्वासित होने पर बाध्य हुआ । चगताई तुर्क स्वयं को चंगेज खाँ के सबसे बड़े पुत्र का वंशज मानते थे ।
बाबर 1526 ई० – 1530 ई० :-
प्रथम मुगल शासक बाबर ( 1526 ई० – 1530 ई० ) ने जब 1494 ई० मे फरगाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया तो उनकी उम्र केवल 12 बर्ष की थी । मंगोलो की दूसरी शाखा , उजबेगो के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गगद्दी छोड़नी पड़ी ।
- अनेक वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 ई० में काबुल पर कब्जा कर लिया ।
- उसने 1526 ई० मे दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत मे हराया और दिल्ली , आगरा , को अपने कब्जे मे कर लिया ।
- 1527 ई० में खानुवा में राणा सांगा राजपूत राजाओ और उनके समर्थकों को हराया | 1528 ई० में चंदेरी में राजपूतो को हराया ।
16 वी शताब्दी के युद्धों में तोप और गोलाबारी का पहली बार इस्तेमाल हुआ । बाबर ने इनका पानीपत की पहली लड़ाई में प्रभावी ढंग से प्रयोग किया ।
हुमायूँ :-
- हुमायूँ ने अपने पिता की वसीयत के अनुसार जायदाद का बंटवारा किया । प्रत्येक भाई को एक प्रांत मिला । उसके भाई मिर्जा कामरान की महत्वकांक्षाओं के कारण हुमायूँ अपने अफगान प्रतिद्वंद्वियों ने सामने फीका पड़ गया ।
- शेर खान ने हुमायूँ को दो बार हराया , 1539 ई० में चौसा में एव 1540 ई० कन्नौज में । इन पराजयों ने हुमायूँ को ईरान की ओर भागने को बाध्य किया ।
- ईरान में हुमायूँ ने सफ़ाविद शाह की मदद ली । उसने 1555 ई० में दिल्ली पर पुंन कब्जा कर लिया परन्तु उससे अगले बर्ष इस इमारत में एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई ।
अकबर :-
- 13 बर्ष की अल्पायु में सम्राट बना । 1568 ई० में सिसिदयो की राजधानी चितौड़ और 1569 ई० में रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया ।
- 1579 ई० – 1580 ई० के बीच मिर्जा हाकिम के पक्ष में विद्रोह हुए । सफविदों को हराकर कंधार पर कब्जा किया और कश्मीर को भी जोड़ लिया । मिर्जा हाकिम की मृत्यु के पश्चात काबुल को भी अपने राज्य में मिला लिया । दक्कन के अभियानों की शुरुआत हुई ।
जहाँगीर :-
- मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की इसके बाद सिक्खों , अहामो और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए , जो पूर्णत: सफल नही हुए ।
- जहाँगीर के शासन के आंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया , ने विद्रोह किया ।
शाहजहाँ :-
- अफगान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह पराजित हुआ ।
- अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ , जिसमे बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया ।
- उत्तर – पश्चिम में बल्ख पर कब्जा करने के लिए उज्बेगो के विरुद्ध अभियान हुआ , जो असफल रहा । परिणामस्वरूप कांधार सफविदों के हाथ मे चला गया ।
- 1632 ई० में अतः अहमदनगर को मुगलो के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेना ने सुलह के लिए निवेदन किया ।
- 1657 ई० – 1658 ई० में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया । इसमे औरंजेब की विजय हुई और दाराशिकोह समेत तीनो भइयो को मौत के घाट उतार दिया गया ।
- शाहजहाँ को उसकी शेष जिदंगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया ।
औरंगजेब :-
- 1663 ई० में उत्तर – पूर्व में अहोमो की पराजय हुई , परन्तु उन्होंने 1690 ई० में पुनः विद्रोह कर दिया ।
- उत्तर -पश्चिम मे यूसफजई और सिक्खों ने विद्रोह किया । इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलो का हस्तक्षेप ।
- मराठा सरदार शिवाजी के विरुद्ध मुगल अभियान आरंभ में सफ़ल रहे , परंतु ओरंगजेब ने शिवाजी का अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित मुगल कैदखाने से भाग निकले ।
- राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के दक्कन के शासको के विरुद्ध विद्रोह किया । जिसमें उसे मराठो और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला । अतः वह ईरान ( सफविद के पास ) से भाग गया ।
- अकबर के विद्रोह के पश्चात औरंगजेब ने दक्कन के शासको के विरुद्ध सेनाये भेजी । 1685 ई० में बीजपुर और 1687 में गोलकुंडा को मुगलो ने आपने राज्य में मिला लिया । 1668 ई० में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों ( जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे ) के विरुद्ध अभियान का प्रबध किया ।
मुगल राजधानी :-
- 16 वी – 17 वी शताब्दीयो के दौरान मुगलो की राजधानियाँ बड़ी ही तेजी से स्थानांतरित होती रही ।
- बाबर ने लोदियो की राजधानी आगरा पर अधिकार किया तथापि उसके शासन काल के दौरान राजसीदरबार भिन्न – भिन्न स्थानों पर लगाये जाते रहे ।
- 1560 के दशक में अकबर ने लाल बलुये पत्थर से आगरे में किले का निर्माण किया ।
- 1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाया । इसका एक कारण था कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था जहाँ ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुकी थी ।
- मुगल बादशाहों के चिश्ती सूफियों के साथ घनिष्ठ सम्बध बने । अकबर ने सीकरी में जमा मस्जिद के बगल में ही शेख सलीम चिश्ती के लिए सगमरमर का मकबरा बनवाया ।
- फतेपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा ( विशाल मेहराबी प्रवेश द्वार ) बनवाने का उद्देश्य वहाँ के लोगो को गुजरात मे मुगल विजय की याद दिलाना था ।
- 1885 ई० में उत्तर – पश्चिम की ओर अधिक नियंत्रण में लाने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया । इस तरह अकबर ने 13 बर्षो तक ( 1548 ई० ) सीमा पर गहरी चौकसी बनाये रखी ।
- 1648 ई० में राजधानी शाहजहानाबाद स्थानांतरित हो गयी ।
इतिवृत्त ( इतिहास का वृतांत )
- वह लेख जिनसे किसी क्षेत्र के इतिहास के बारे में पता चलता है इतिवृत्त कहलाते हैं । मुग़ल साम्राज्य के सभी इतिवृत पांडुलिपियों के रूप में मिले है ।
पांडुलिपियां :-
- वह सभी लेख जो हाथो से लिखे जाते है पांडुलिपियां कहलाते है । मुगल राजाओं द्वारा कई इतिवृत्त तैयार करवायें गए । इन इतिवृत्तों की रचना मुगल राजाओं द्वारा इसीलिए करवाई गई ताकि आने वाली पीढ़ी को मुग़ल शासन के बारे में जानकारी मिल सके । इन सभी इतिवृत्तों से मुगल साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं ।
इतिवृत्त की रचना :-
- मुगल बादशाहो द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्यन के महत्वपूर्ण स्रोत है ।
- ये इतिवृत्त साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगो के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन के उद्देश्य से लाए गए थे ।
- शासक यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासक का विवरण उपलब्ध हो ।
- मुगल इतिवृत्त के लेखक निरपवाद से दरबारी ही रहे । उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके केंद्र बिंदु में थी – शासक पर केंद्रित घटनाए , शासक का परिवार , दरबार व अभिजात , युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएं ।
- इनके लेखको की निगाह में सम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था । मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थी आर्थात वे हाथ से लिखी होती थी । इन रचनाओं का मुख्य केंद्र शाही कितबखाना था ।
Class 12th History भाग 1: भारतीय इतिहास के कुछ विषय
- अध्याय 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
- अध्याय 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ
- अध्याय 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज
- अध्याय 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास
Class 12th History भाग 2: भारतीय इतिहास के कुछ विषय
- अध्याय 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ
- अध्याय 6 भक्ति सूफी परंपराएँ
- अध्याय 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
- अध्याय 8 किसान, जमींदार और राज्य
- अध्याय 9 राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार