औपनिवेशिक शहर – Bihar Board class 12 history chapter 12 notes in hindi

इस अध्याय मे हम Bihar Board class 12 history chapter 12 notes in hindi – औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य बारे में पड़ेगे तथा हड़प्पा बासी लोगो के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर चर्चा करेंगे

Bihar Board class 12 history chapter 12 notes in hindi

औपनिवेशिक शहर – Bihar Board class 12 history chapter 12 notes in hindi

स्रोत : –

  • ईस्ट इंडिया कंपनी के रिकॉर्ड ।
  • जनगणना रिपोर्ट ।
  • नगरपालिका रिपोर्ट ।
  • 1900-1940 की अवधि के दौरान शहरी आबादी लगभग 10 % से बढ़कर 13 % हो गई ।

18 वीं शताब्दी के अंत के दौरान मद्रास , बॉम्बे और कलकत्ता महत्वपूर्ण बंदरगाहों के रूप में विकसित हो गए थे ।

सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग ने नस्लीय रूप से विशिष्ट क्लब , रेस कोर्स और थिएटर बनाए । परिवहन के नए साधनों जैसे घोड़े से खींची जाने वाली गाड़ी , ट्राम , बस आदि के विकास ने लोगों को अपने काम के स्थानों से दूर के स्थान पर रहने की सुविधा प्रदान की ।

हर जगह के शासक भवनों के माध्यम से अपनी शक्ति को व्यक्त करने का प्रयास करते हैं । कई भारतीयों ने वास्तुकला की यूरोपीय शैलियों को आधुनिकता और सभ्यता के प्रतीक के रूप में अपनाया ।

औपनिवेशिक शासन में शहर :- पश्चिमी विश्व के ज्यादातर भागो में आधुनिक शहर औधोगिकरण के साथ सामने आए थे ।

  • कलकत्ता , बम्बई और मद्रास का महत्व प्रेजिडेन्सी शहरों के रूप में तेजी से बढ़ रहा था । ये शहर भारत मे ब्रिटिश सत्ता के केंद्र बन गए थे ।
  • उसी समय बहुत सारे दूसरे शहर कमजोर पड़ते जा रहे थे । खास चीजो के उत्पादन वाले बहुत सारे शहर इसलिए पिछड़ने लगे क्योंकि वहाँ जो चीज़े बनती थी उनकी माँग घट गई थी ।
  • इसी प्रकार जब अंग्रेजो ने स्थानीय राजाओ को हरा दिया और शासन के नए केंद्र पैदा हुए तो क्षेत्रीय सत्ता के पुराने केंद्र ढह गए ।
  • इसी प्रकिया को अक्सर विशहरीकरण कहा जाता है । मछलीपट्टनम , सूरत और श्रीरंगपटम जैसे शहरों का 19वी सदी में काफी ज्यादा विशहरीकरण हुआ । 20वी शताव्दी के शुरुआत में केवल 11% लोग शहरों में रहते थे ।
  • ऐतहासिक शहरीशहर दिल्ली 1911 ई० सदी में एक धूल भरा छोटा – सा कस्बा बनकर रह गया । परन्तु 1912 ई० में ब्रिटिश भारत की राजधानी बनने के बाद इसमे दोबारा जान आ गई ।
  • मछलीपट्टनम 17वी शताब्दी में एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह के रूप में विकसित हुआ । 18वी शताब्दी के आखिर में जब व्यपार बम्बई , मद्रास , और कलकत्ता के नए ब्रिटिश बन्दरगाहो पर केंद्रित होने लगा तो उसका महत्व घटता गया ।

कस्बा :- ‘ कस्बा ‘ विशिष्ट प्रकार की आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र थे । यहाँ पर शिल्पकार , व्यापारी , प्रशासक तथा शासक रहते थे । एक प्रकार से शाही शहर और ग्रामीण अंचल के बीच का स्थान था ।

शहरों की स्थिति :-औपनिवेशिक काल में तीन प्रमुख बड़े शहर विकसित हुए – मद्रास , कलकत्ता तथा बम्बई । ये तीनों शहर मूलतः मत्स्य ग्रहण तथा बुनाई के गाँव थे जो इंग्लिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों के कारण महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए । बाद में शासन के केन्द्र बने , जिन्हें प्रेसीडेंसी शहर कहा गया ।

  • शहरों का महत्व इस बात पर निर्भर करता था कि , प्रशासन तथा आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र कहाँ है , क्योंकि वहीं रोजगार व व्यापार तंत्र मौजूद होते थे ।
  • मुगलों द्वारा बनाए गए शहर प्रसिद्ध थे – जनसंख्या के केन्द्रीकरण , अपने विशाल भवनों तथा अपनी शाही शोभा एवं समृद्धि के लिए । जिनमें आगरा , दिल्ली और लाहौर प्रमुख थे , जो शाही प्रशासन के केन्द्र थे ।
  • शाही नगर किलेबंद होते थे , उद्यान , मस्जिद , मन्दिर , मकबरे , कारवाँ , सराय , बाजार , महाविद्यालय सभी किले के अन्दर होते थे , तथा विभिन्न दरवाजों से आने – जाने पर नियंत्रण रखा जाता।
  • उत्तर भारत के मध्यकालीन शहरों में ” कोतवाल ‘ नामक राजकीय अधिकारी नगर के आंतरिक मामलों पर नज़र रखता था और कानून बनाए रखता था ।

18 वीं शताब्दी में परिवर्तन :- मुगल साम्राज्य का पतन होने के साथ ही पुराने नगरों का अस्तित्व समाप्त हो गया और क्षेत्रीय शक्तियों का विकास होने के कारण नये नगर बनने लगे । इनमें लखनऊ , हैदराबाद , सेरिंगपट्म , पूना , नागपुर , बड़ौदा तथा तंजौर आदि उल्लेखनीय हैं ।

  • व्यापारी , प्रशासक , शिल्पकार तथा अन्य व्यवसायी पुराने नगरों से यहाँ आने लगे । यहाँ उनको काम तथा संरक्षण उपलब्ध था । चूंकि राज्यों के बीच युद्ध होते रहते थे इसलिए भाड़े के सैनिकों के लिए भी काम था ।
  • मुगल साम्राज्य के अधिकारियों ने कस्बे और गंज ( छोटे स्थायी बाजार ) की स्थापना की । इन शहरी केन्द्रों में यूरोपीय कम्पनियों ने भी धाक जमा ली । पुर्तगालियों ने पणजी में , डचों ने मछलीपट्टनम् , अंग्रेजों ने मद्रास तथा फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी में अपने व्यापार केन्द्र खोल लिए ।
  • 18 वीं शताब्दी में स्थल आधारित साम्राज्यों का स्थान जलमार्ग आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया । भारत में पूँजीवाद और वाणिज्यवाद को बढ़ावा मिलने लगा ।
  • मध्यकालीन शहरों – सूरत , मछलीपट्टनम् तथा ढाका का पतन हो गया ।
  • प्लासी युद्ध के पश्चात् अंग्रेजी व्यापार में वृद्धि हुई और मद्रास , कलकत्ता तथा बम्बई जैसे शहर आर्थिक राजधानियों के रूप में स्थापित हुए ।
  • ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गये । इन शहरों को नये तरीके से बसाया गया और भवनों तथा संस्थानों का निर्माण किया गया । रोजगार के विकास साथ ही यहाँ लोगों का आगमन भी तेज हो गया ।

औपनिवेशिक रिकॉर्ड :- ब्रिटिश सरकार ने विस्तृत रिकॉर्ड रखा , नियमित सर्वेक्षण किया , सांख्यिकीय डेटा एकत्र किया और अपने व्यापारिक मामलों को विनियमित करने के लिए अपनी व्यापारिक गतिविधियों के आधिकारिक रिकॉर्ड प्रकाशित किए । 

  • ब्रिटिशों ने भी मानचित्रण शुरू कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि नक्शे परिदृश्य स्थलाकृति को समझने , विकास की योजना बनाने , सुरक्षा बनाए रखने और वाणिज्यिक गतिविधियों की संभावनाओं को समझने में मदद करते हैं । 
  •  उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रतिनिधियों को शहरों में बुनियादी सेवाओं के संचालन के लिए निर्वाचित करने के लिए जिम्मेदारियां देनी शुरू कर दी और इसने नगरपालिका करों का एक व्यवस्थित वार्षिक संग्रह शुरू किया । 
  • अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 ई० में किया गया । इसके बाद 1881 ई . से दशकीय ( प्रत्येक 10 वर्ष में होने वाली ) जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई । जिससे शहरों में जलापूर्ति , निकासी , सड़क निर्माण , स्वास्थ्य व्यवस्था तथा जनसंख्या के फैलाव पर नियंत्रण किया जा सके तथा वार्षिक नगरपालिका कर वसूला जा सकें ।
  • कई बार स्थानीय लोगों द्वारा मृत्यु दर , बीमारी , बीमारी के बारे में गलत जानकारी दी गई । हमेशा ये रिपोर्ट नहीं की जाती थीं । कभी कभी ब्रिटिश सरकार द्वारा रखी गई रिपोर्ट और रिकॉर्ड भी पक्षपातपूर्ण थे । हालांकि , अस्पष्टता और पूर्वाग्रह के बावजूद , इन अभिलेखों और आंकड़ों ने औपनिवेशिक शहरों के बारे में अध्ययन करने में मदद की ।

उत्तर औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभालकर रखने के कारण :-

  • आंकड़े और जानकारियों के आधार पर शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए ।
  • व्यापारिक गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा व्यापार को कुशलता से प्रोन्नत करने के लिए ।
  •  शहरों के विस्तार के साथ शहरी नागरिकों के रहन – सहन , आचार – विचार , शैक्षिक जागरूकता , राजनीतिक रूझान आदि का अध्ययन करने के लिए ।
  • किसी स्थान की भौगोलिक बनावट और भू – दृश्यों को भलीभाँति समझने के बाद उन स्थानों पर शहरीकरण , साम्राज्य विस्तार आदि करने के लिए ।
  • जनसंख्या के आकार में होने वाली सामाजिक बढ़ोत्तरी का अध्ययन करके उसके अनुसार प्रशासनिक तौर – तरीकों , नियम – कानूनों आदि को बनाने तथा उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए ।

आँकड़े एकत्रित करने में कठिनाइयाँ :-

  • लोग सही जानकारी देने को तैयार नहीं थे ।
  • मृत्यु दर और बीमारियों के आंकड़े एकत्र करना मुश्किल था ।

नोट :- बंदरगाह : – मद्रास , बॉम्बे और कलकत्ता
किले :
– मद्रास में सेंट जॉर्ज और कलकत्ता में फोर्ट विलियम ।

औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के पुनर्निर्माण को समझने में जनगणना के आंकड़े किस हद तक उपयोगी हैं ?

  • ये डेटा जनसंख्या की सही संख्या के साथ – साथ श्वेत और अश्वेतों की कुल जनसंख्या जानने के लिए उपयोगी हैं ।
  • ये आंकड़े हमें यह भी बताते हैं कि भयानक या घातक बीमारियों से लोगों की कुल संख्या या कुल आबादी किस हद तक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है ।
  • जनगणना के आंकड़े हमें विभिन्न समुदायों की कुल संख्या , उनकी भाषा , उनके कार्यों और आजीविका के साधनों के साथ – साथ उनकी जाति और धर्म के बारे में भी पूरी जानकारी प्रदान करते हैं ।

व्हाइट और ब्लैक टाउन :-  औपनिवेशिक शहरों में गोरों ( Whites ) अर्थात् अंग्रेजों और कालों ( Blacks ) अर्थात् भारतीयों की अलग – अलग बस्तियाँ होती थीं । उस समय के लेखन में भारतीयों की बस्तियों को ” ब्लैक टाउन ” और गोरों की बस्तियों को ” व्हाइट टाउन ” कहा जाता था ।

  • इन शब्दों का प्रयोग नस्ली भेद प्रकट करने के लिए किया जाता था । अंग्रेजों की राजनीतिक सत्ता की मजबूती के साथ ही यह नस्ली भेद भी बढ़ता गया ।
  • इन दोनों बस्तियों के मकानों में भी अंतर होता था । भारतीय एजेंटों और बिचौलियों ने बाजार के आस – पास व्हाइट टाउन में परम्परागत ढंग के दालान मकान बनवाये । सिविल लाइन्स में बँगले होते थे । सुरक्षा के लिए इनके आस – पास छावनियाँ भी बसाई जाती थी ।
  • व्हाइट्स टाउन साफ सुथरे होते थे जबकि ब्लैक टाउन गंदे होते थे । यहाँ बीमारी फैलने का डर होता था ।

औपनिवेशिक काल में भवन निर्माण :- औपनिवेशिक काल में भवन निर्माण की तीन शैलियाँ प्रचलन में आई ।

  • पहली नवशास्त्रीय ( नियोक्लासिकल ) शैली जिसमें बड़े – बड़े स्तंभों के पीछे रेखागणितीय सरंचना पाई जाती थी । जैसे –बम्बई का टाउन हॉल व एलिफिस्टन सर्कल ।
  • दूसरी शैली नव – गौथिक शैली थी । जिसमें ऊँची उठी हुई छत , नोकदार मेहराब बारीक साज – सज्जा देखने को मिलती है , जैसे सचिवालय , बम्बई विश्वविद्यालय , बम्बई उच्च न्यायालय ।
  • तीसरी शैली थी इंडो – सारासेनिक शैली , जिसमें भारतीय और यूरोपीय शैलियों का मिश्रण था , इसका प्रमुख उदाहरण है : – गेटवे ऑफ इंडिया , बम्बई का ताजमहल होटल ।

नए शहरों में सामाजिक जीवन :- शहरों में जीवन हमेशा एक प्रवाह में लगता था , अमीर और गरीब के बीच एक बड़ी असमानता थी ।

  • नई परिवहन सुविधाएं जैसे घोड़ा गाड़ी , रेलगाड़ी , बसें विकसित की गई थीं । लोगों ने अब परिवहन के नए मोड का उपयोग करके घर से कार्यस्थल तक की यात्रा शुरू की ।
  • कई सार्वजनिक स्थानों का निर्माण किया गया था , जैसे 20 वीं शताब्दी में सार्वजनिक पार्क , थिएटर , डब और सिनेमा हॉल । इन स्थानों ने सामाजिक संपर्क के मनोरंजन और अवसर प्रदान किया ।
  • लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे । क्लर्कों , शिक्षकों , वकीलों , डॉक्टरों , इंजीनियरों और एकाउंटेंट की मांग थी । स्कूल , कॉलेज और पुस्तकालय थे ।
  • बहस और चर्चा का एक नया सार्वजनिक क्षेत्र उभरा । सामाजिक मानदंडों , रीति – रिवाजों और प्रथाओं पर सवाल उठाए जाने लगे ।
  • उन्होंने नए अवसर प्रदान किये । महिलाओं के लिए अवसर । इसने महिलाओं को अपने घर से बाहर निकलने और सार्वजनिक जीवन में अधिक दिखाई देने का मार्ग प्रदान किया ।
  • उन्होंने शिक्षक , रंगमंच और फिल्म अभिनेत्री , घरेलू कामगार कारखानेदार आदि के रूप में नए पेशे में प्रवेश किया ।
  • मध्यम वर्ग की महिलाओं ने स्वयं को आत्मकथा , पत्रिकाओं और पुस्तकों के माध्यम से व्यक्त करना शुरू कर दिया ।
  • परंपरावादियों को इन सुधारों की आशंका थी , उन्होंने समाज के मौजूदा शासन और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को तोड़ने की आशंका जताई ।
  • जिन महिलाओं को घर से बाहर जाना पड़ा , उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा और वे उन वर्षों में सामाजिक नियंत्रण की वस्तु बन गईं । शहरों में , मजदूरों का एक वर्ग या श्रमिक वर्ग थे ।
  • गरीब अवसर की तलाश में शहरों में आ गए , कुछ लोग जीवन के नए तरीके से जीने और नई चीजों को देखने की इच्छा के लिए शहरों में आए ।

शहरों में जीवन महंगा था , नौकरियां अनिश्चित थीं और कभी – कभी प्रवासी पैसे बचाने के लिए अपने परिवार को मूल स्थान पर छोड़ देते थे । प्रवासियों ने तमाशा ( लोक रंगमंच ) और स्वांग ( व्यंग्य ) में भी भाग लिया और इस तरह से उन्होंने शहरों के जीवन को एकीकृत करने का प्रयास किया ।


Class 12th History भाग 1: भारतीय इतिहास के कुछ विषय

Class 12th History भाग 2: भारतीय इतिहास के कुछ विषय

Class 12th History भाग 3: भारतीय इतिहास के कुछ विषय

About the author

My name is Najir Hussain, I am from West Champaran, a state of India and a district of Bihar, I am a digital marketer and coaching teacher. I have also done B.Com. I have been working in the field of digital marketing and Teaching since 2022

Leave a comment