एक वृक्ष की हत्या – Bihar Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 8 Ek Vriksh Ki Hatya

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एक वृक्ष की हत्या – Bihar Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 8 Ek Vriksh Ki Hatya

कवि परिचय

कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 ई० में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था । कुँवर ।’ नारायण ने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 के आस-पास की । उन्होंने कविता के अलावा चिंतनपरक लेख, कहानियाँ और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखीं हैं, किंतु कविता उनके सृजन-कर्म में हमेशा मुख्य रही ।

उनको प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘चक्रव्यूह’, ‘परिवेश : हम तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ (काव्य संग्रह); ‘आत्मजयी’ (प्रबंधकाव्य): ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा) : ‘मेर साक्षात्कार’ (साक्षात्कार) आदि ।

कुँवर नारायण जी को अनके पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जो इस प्रकार हैं – ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘कुमारन आशान पुरस्कार’, ‘व्यास सम्मान’, ‘प्रेमचंद पुरस्कार’, ‘लोहिया सम्मान’, ‘कबीर सम्मान’ आदि ।

कुँवर नारायण पूरी तरह नगर संवेदना के कवि हैं । विवरण उनके यहाँ नहीं के बराबर है, पर वैयक्तिक और सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होता है । आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसे अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यंता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती है। नयी कविता के दौर में, जब प्रबंधकाव्य का स्थान लंबी कविताएँ लेने लगी, तब कुँवर नारायण ने ‘आत्मजयी’ जैसा प्रबंधकाव्य रचकर भरपूर प्रतिष्ठा प्राप्त की । उनकी कविताओं में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है । भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। उनमें यथार्थ का खुरदुरापन भी मिलता है और उसक सहज सौंदर्य भी।

तुरंत काटे गए एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त करती यह कविता आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक अभिलेख है । यह कविता कुँवर नारायण के कविता संग्रह ‘इन दिनों से संकलित है।

एक वृक्ष की हत्या पाठ का अर्थ

नई कविता काल के प्रखर कवि कुंवर नारायण नगर संवेदना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में वैयक्तिक और सामाजिक उहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होती है। आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसने अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती हैं। भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं।।

प्रस्तुत कविता में कवि तुरंत काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त किया है। कवि के घर के सामने ही वर्षों पुराना एक बड़ा पेड़ था जो काट लिया गया है। कभी यह पेड़ दूसरों को छाया देकर उसकी थकान दूर करता था। उसके घर की रखवाली करता था किन्तु आज वह निर्जीव बन पड़ा है। पुराना होने के कारण उसके छाल धूमिल हो गये थे। उसकी डालियाँ राइफल की तरह तनी हुई रहती थी अक्खड़पन उसके नस-नस में था, धूप, वर्षा, सर्दी, गर्मी में वह सदा चौकन्ना रहता था किन्तु आज वह बेजान हो गया है। दूर से परिचय पूछकर दोस्तों को एक नई ताजगी देकर मन की व्यथा को हरण करने वाला वृक्ष दुश्मनों के द्वारा काट लिया गया। वस्तुतः यहाँ कवि बताना चाहता है कि गाँव, शहर वातावरण को बचाना है तो पहले पेड़ को बचाना चाहिए। वृक्ष हमारे मित्र हैं। मित्र को दुश्मन समझ कर उसका विनाश करना मानव जाति को विनाश करना है।

कविता के साथ

प्रश्न 1. कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था?
उत्तर- कवि एक वृक्ष के बहाने प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं पर्यावरण की रक्षा की चर्चा की है। वृक्ष मनुष्यता, पर्यावरण एवं सभ्यता की प्रहरी है। यह प्राचीन काल से मानव के लिए वरदान स्वरूप है, इसका पोषक है, रक्षक है। इन्हीं बातों का चिंतन करते हुए कवि को वृक्ष बूढा चौकीदार लगता था

प्रश्न 2. वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था?
उत्तर- कवि जब अपने घर कहीं बाहर से लौटता था तो सबसे पहले उसकी नजर घर के आगे स्थिर खड़ा एक पुराना वृक्ष पर पड़ती। उसे लगता मानो घर के आगे सुरक्षा प्रहरी खड़ा है। उसके निकट आने पर कवि को आभास होता मानो वृक्ष उससे पूछ रहा है कि तुम कौन हो?

कवि इसका उत्तर देता-मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। इसी संवाद के साथ वह उसके निकट बैठकर भविष्य में आने वाले पर्यावरण संबंधी खतरों की अंदेशा करता है।

प्रश्न 3. कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर- कविता का समापन करते हुए कवि पर्यावरण एवं सभ्यता के प्रति संवेदनशील होकर चिंतन करता है। चिंतन करने में उसे मानवता, पर्यावरण एवं सभ्यता, राष्ट्रीयता के दुश्मन की झलक मिलती है। इसी का जिक्र करते हुए कवि कहते हैं कि हमें घर को विनाश करने वालों से सावधान रहना होगा, शहर में विनाश होते हुए सभ्यता की रक्षा के लिए आगे आना होगा। अर्थात् कवि को अंदेशा है कि आज पर्यावरण, हमारी प्राचीन सभ्यता, मानवता तट के जानी दुश्मन समाज में तैयार हैं। अंदेशा इसलिए करता है क्योंकि आज लोगों की प्रवृत्ति वृक्षों को काटने की हो गई। सभ्यता के विपरीत कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, मानवता का ह्रास हो रहा है। ऐसी स्थिति में वृक्षों के प्रति मानवता के प्रति संवेदनशील हो कम दिखाई पड़ रहे हैं। यह चिंता का विषय है। यही कवि की आशंका का विषय है।

प्रश्न 4. घर शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों?
उत्तर- घर, शहर और देश के बाद कवि नदियों, हवा, भोजन, जंगल एवं मनुष्य को बचाने की बात करता है क्योंकि नदियाँ, हवा, अन्न, फल, फूल जीवनदायक हैं। इनकी रक्षा नहीं होगी तो मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा नहीं हो सकती है। जंगल पर्यावरण का सुरक्षा कवच है। जंगल की रक्षा नहीं होने से प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होगी। इन सबसे बढ़कर मनुष्य की रक्षा करनी होगी। मनुष्य में मनुष्यता कायम रहे, मानवता का गुण निहित हो, इसकी सभ्यता बनी रहे। इसे असभ्य होने से बचाने की महती आवश्यकता है। साथ ही जंगल की तरह मानवीयता का कत्ल नहीं हो इसके लिए रक्षार्थ आगे आने की महती आवश्यकता है।

प्रश्न 5. कविता की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि बदलते हुए परिवेश में दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जिस तरह प्रकृति का दोहन हो रहा है उससे लगता है कि सारी दुनिया प्रकृति का स्वतः शिकार हो जायेगा। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ती हुई जनसंख्या, समुद्र का जलस्तर ऊपर उठना ये सब इसके सूचक हैं। वृक्ष हमारे मित्र हैं फिर भी इसको निष्ठुरता से काटते जा रहे हैं। अतिवृष्टि अनावृष्टि, मौसम का बदलता चक्र पर्यावरण संकट का संकेत कर रहे हैं। आज मानव आँख होते हुए भी अंधा हो गया है। कवि इस समस्या से बहुत चिन्तित है। उसे लगता है कि दुनिया जल्द ही समाप्त हो जायेगी। वृक्ष को काटना अपने आप को मृत्यु के गोद में झोंकना है। ठंडी छाव देने वाले वृक्ष मनुष्य की निष्ठुरता के कारण काटे जा रहे हैं। अंत में कवि कहना चाहता है कि यदि समय रहते इस समस्या से निजात पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो जीव जगत समाप्त हो जायेंगे। मुडो प्रकृति की ओर का नारा मानव को समझना चाहिए।

प्रश्न 6. व्याख्या करें :
(क) दूर से ही ललकारता, कौन ? / मैं जवाब देता, ‘दोस्त’।
(ख) बचाना है-जंगल को मरूस्थल हो जाने से / बचाना है-मनुष्य को जंगल हो जाने से।

उत्तर- (क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के कुँवर नारायण रचित ‘एक वृक्ष की हत्या, पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने एक वृक्ष को कटने से आहत होता है और इस पर चिंतन करते हुए पूरी पर्यावरण एवं मानवता पर खतरा की आशंका से आशंकित हो जाता है। इसमें अपनी संवेदना को कवि ने अभिव्यक्त किया है। प्रस्तुत व्याख्येय में कवि कहता है कि जब मैं अपने घर लौटा तो पाया कि मेरे घर के आगे प्रहरी के खड़ा वृक्ष को काट दिया गया है। उसकी याद करते हुए कवि कहते हैं कि वह घर के सामने अहर्निश खड़ा रहता था मानो वह गृहरक्षक हो। जब मैं बाहर से लौटता था उसे दूर से देखता था और मुझे प्रतीत होता था कि वृक्ष मुझसे पूछ रहा हैं कि तुम कौन हो? तब मैं बोल पड़ता था कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ। इसमें वृक्ष और कवि के संवाद की प्रस्तुति है।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि भविष्य में आने वाले प्राकृतिक संकट, मानवीयता पर खतरा एवं ह्रास होते सभ्यता की ओर ध्यानाकर्षण कराते हुए भावी आशंका को व्यक्त किये हैं। साथ ही इन सबकी रक्षा संरक्षण एवं विकास हेतु चिंतनशील होने पर बल दिया है।

प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि अगर हम इस अंधाधुंध विकास क्रम में विवेक से काम नहीं लेंगे तो वृक्ष कटते रहेंगे और भविष्य में जंगल मरुस्थल का रूप ले लेगा। साथ ही मानवता की सभ्यता की रक्षा के प्रति सचेत नहीं होंगे तो मानव भी जंगल का रूप ले सकता है।

मानवीयता पशुता में परिवर्तित हो सकता है। मानव दानवी प्रवृत्ति अपनाता दिख रहा है और इस बढ़ते प्रवृत्ति को रोकना आवश्यक होगा। कवि मानवीयता स्थापित करने हेतु चिंतनशील है, सभ्यता की सुरक्षा हेतु प्रयत्नशील होने की प्रेरणा दे रहे हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण हेतु सजग करने की शिक्षा दे रहे हैं।

प्रश्न 7. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- वस्तुतः किसी भी कहानी, कविता आदि का शीर्षक वह धुरी होता है जिसके इर्दगिर्द कथावस्तु घूमती रहती है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक एक वृक्ष की हत्या के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को सीख देने के लिए रखा गया है। वृक्ष पुराना होने पर भी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है। उसके फल, छाया अपने लिए नहीं औरों के लिए होता है। अपना दोस्त समझने वाला वृक्ष दूसरों के लिए सर्वस्व सुख समर्पण कर देता है। घर, शहर, राष्ट्र और दुनिया को बचाने से पहले वृक्ष को बचायें। बदलता हुआ मौसम चक्र विनाश का सूचक है। हमारा जीवन मरण, युवा-जरा आदि सभी प्रकृति के गोद में ही बीतता है फिर भी हम प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं। अतः उपयुक्त दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और समीचीन है।

प्रश्न 8. इस कविता में एक रूपक की रचना हुई है। रूपक क्या है ? और ‘यहाँ उसका क्या स्वरूप है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जहाँ रूप और गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया जाता है वहाँ रूपक होता है। इसमें साधारण धर्म और वाचक शब्द नहीं होते हैं। इस कविता में वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष रूपक है। यहाँ चौकीदार वृक्ष है। उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया गया है।

प्रश्न 9. ‘एक वक्ष की हत्या कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर- इस कविता में कवि कुँवर नारायण ने एक वृक्ष के काटे जाने से उत्पन्न परिस्थिति, पर्यावरण संरक्षण और मानव सभ्यता के विनाश की आशंका से उत्पन्न व्यथा का उल्लेख किया कवि वृक्ष की कथा से शुरू होकर, घर, शहर, देश और अंततः मानव के समक्ष उत्पन्न संकट तक आता है। चूंकि मनुष्य और वृक्ष का संबंध आदि काल से है, इसलिए वह वृक्ष से ही शुरू करता हुआ कहता है कि इस बार जो वह घर लौटा तो दरवाजे पर हमेशा चौकीदार की तरह तैनात रहनेवाला वृक्ष नहीं था। ठीक-जैसे चौकीदार सख्त शरीर, झुर्रादार चेहरा, एक लम्बी-सी राइफल लिए, फूल-पत्तीदार पगड़ी बाँधे, पाँव में फटा-पुराना चरमराता जूता पहने, मजबूत, धूप-वर्षा में, खाकी वर्दी पहने और हर आनेवाले को ललकारता और फिर ‘दोस्त’ सुनकर आने देता है, वैसे ही वह वृक्ष था-बहुत पुराना, मजबूत तने वाला, फटी छालें थी उसकी। जूते की तरह जड़ें फैली थीं, मटमैला रंग था और उसकी डालें राइफल की तरह लम्बी थीं। तने के ऊपर पत्तियाँ, पगड़ी जैसी फैली थीं। जाड़ा, गर्मी और बरसात में सीधा रहता था और रह-रह कर उसकी शाखाएँ, हवा बहने पर हरहराती थीं मानो आनेवाले से, पूछता हो कौन और फिर शान्त हो जाता था। शान्ति से बैठते थे हम सब। अच्छा लगता था।

लेकिन एक डर था। हुआ भी वही। गफलत हुई या नादानी कहें पेड़ कट गया। किन्तु यह सिलसिला रहा तो और भी बहुत कुछ होगा। अब सचेत रहना है। घर को बचाना होगा लूटेरों से, शहर को बचाना होगा हत्यारों से, देश को बनाना होगा देश के दुश्मनों से। इतना ही नहीं खतरे और भी हैं। नदियों को नाला बनाने से बचाना होगा, उसमें डाले जानेवाले कचरों और रसायनों को रोकना होगा। वृक्षों को काटने से जो हवा में धुआँ बढ़ता जा रहा है, उसे रोकना होगा और जमीन में रासायनिक उर्वरकों को डालने से रोकना ताकि अनाज जहर न बनें। दरअसल, जंगल को रेगिस्तान नहीं बनने देना होगा। जंगल रेगिस्तान बने कि आफत आई। किन्तु सोचना होगा कि क्यों कर रहा है मनुष्य यह सब? मनुष्य की सोच में जो खोट पैदा हो गयी है, जिससे ये समस्याएँ पैदा हुई हैं उस खोट को निकालना होगा। मनुष्य को जंगली बनने से रोकना होगा, उसे सही अर्थों में मनुष्य बनाना होगा, तभी मानवता बचेगी।

भाषा की बात

प्रश्न 1. निम्नलिखित अव्ययों का वाक्यों में प्रयोग करें
अबकी, हमेशा, लेकिन, दूर, दरअसल, कहीं

उत्तर-

  • अबकी – अबकी समस्या गंभीर है।
  • हमेशा – हमेशा सत्य बोलना चाहिए।
  • लेकिन – वह आनेवाला था लेकिन नहीं आया।
  • दूरं – यहाँ से दूर नदी बहती है।
  • दरअसल – दरअसल ये बाते झूठी हैं।
  • कहीं – वह कहीं नहीं जायेगा।

प्रश्न 2. कविता से विशेषणों का चुनाव करते हुए उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें।
उत्तर-

  • बूढा – चौकीदार
  • पुराने – चमड़े
  • खुरदरा – तना
  • सखी – डाल
  • फूल पत्तीदार – पगड़ी
  • फटा पुराना – जूता
  • ठंढी – छाँव

प्रश्न 3. निम्नांकित संज्ञा पदों का प्रकार बताते हुए वाक्य-प्रयोग करें: घर, चौकीदार, दरवाजा, डाल, चमड़ा, पगड़ी, बल-बूता, बारिश, वर्दी, दोस्त, पल, छाँव, अन्देशा, नादिरो, जहर, मरूस्थल, जंगल।

उत्तर-

  • घर – जातिवाचक – घर बड़ा है।
  • चौकीदार – जातिवाचक – चौकीदार ईमानदार है।
  • दरवाजा – जातिवाचक – दरवाजा खोल दो।
  • डाल – जातिवाचक – वृक्ष के डाल टूट गये।
  • चमड़ा – जातिवाचक – चमड़ा सड़ गया।
  • पगड़ी – जातिवाचक – पगड़ी नई है।
  • बल-बूता – भाववाचक – अपने बल-बूते पर कार्य करो।
  • बारिश – जातिवाचक – बारिश हो रही है।
  • वर्दी – जातिवाचक – वर्दी नयी है।
  • दोस्त – जातिवाचक – दोस्त पुराना है।
  • पल – भाववाचक – एक-एक पल का सदुपयोग करो।
  • छाँव – भाववाचक – छाँव ठंढी है।
  • अन्देशा – भाववाचक – अन्देशा समाप्त हो गया।
  • नादिरों – जातिवाचक – नादिरों से बचना है।
  • जहर – जातिवाचक – उसने जहर पी लिया।
  • मरूस्थल – जातिवाचक मरूस्थल फैल रहा है।
  • जंगल – जातिवाचक – जंगल घना है।

प्रश्न 4. कविता में प्रयुक्त निम्नांकित पदों के कारक स्पष्ट करें चमड़ा, पाँव, धूप, सर्दी, वर्दी, अन्देशा, शहर, नदी, खाना, मनुष्य।
उत्तर-

  • चमड़ा – सबंध कारक
  • पाँव – अधिकरण कारक
  • धूप – अधिकारण कारक
  • सर्दी – अधिकरण कारक
  • वर्दी – अधिकरण कारक
  • अन्देशा – अधिकरण कारक
  • शहर – कर्म कारक
  • नदी – कर्म कारक
  • खाना – कर्म कारक
  • मनुष्य – कर्म कारक

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता, “कौन ?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छांव में

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर-
(क) कविता-एक वृक्ष की हत्या।
कवि-कुँवर नारायण।

(ख) प्रसग-हिन्दी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण ने प्रस्तुत कविता ‘एक वृक्ष की हत्या’ के इस अंश में पर्यावरण की व्यवस्था पर उठते अनेक सवालों की ओर प्रबुद्ध वर्गों को आकर्षित किया है। यहाँ कवि कहना चाहते हैं कि आज प्रबुद्ध वर्ग ही क्षणभंगुर, स्वार्थपरता की लोलुपता में वृक्षों को काटकर शाश्वतता के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि पूर्ण रूप से संवेदनशील हैं अत: ‘एक वृक्ष की हत्या’ के बहाने मनुष्य और सभ्यता के विनाश की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए कहते हैं कि.मेरे घर के बाहर ठीक दरवाजे के सामने एक विशाल छायादार वृक्ष था। कुछ दिनों के बाद जब मैं अबकी बार घर लौटा तो देखा कि उस.वृक्ष को काट दिया गया है। वह बूढा वृक्ष चौकीदार के समान घर के दरवाजे पर तैयार रहता था। वह वृक्ष इतना बूढ़ा और पुराना हो गया था कि उसके तने के बाहरी भाग बिल्कुल काले पड़ गये थे, जैसे लगता था कि वह चौकीदार सख्त और पुराने चमड़े धारण करके खड़ा रहता है। जहाँ-तहाँ वृक्ष के तने में ऊबड़-खाबड़, ऊँच-नीच की स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई डालियाँ सूख गयी थीं तो लगता था कि वह बूढ़े वृक्ष के शरीर से झुर्रियाँ लटक रही हैं और कंधे पर राइफल लेकर रखवाली कर रहा है। उसकी ऊँची टहनी पर सुन्दर-सुन्दर फूल के गुच्छे और हरे-हरे पत्ते उसकी पगड़ी के रूप में सुशोभित होते थे। उसके पुराने जड़ फटे-पुराने जूते के समान लगते थे। जैसे लगता था उसके जड़ चरमरा रहे हैं, फिर भी विपरीत परिस्थितियों में शक्ति सामर्थ्य के साथ डटा रहने वाला था। प्रचण्ड गर्मी, मूसलाधार बारिश, कड़ाके की ठंड में हमेशा चौकन्ना रहकर पुराने छाल रूपी खाकी वरदी पहनकर डटा रहता था।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि एक तुरन्त काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंत:व्यथा को अभिव्यक्त करता है। मानव जो अपने आपको प्रबुद्ध वर्ग कहता है वही क्षणभंगुर स्वार्थ की लिप्सा में पड़कर शाश्वतता के साथ कैसा खतरनाक खिलवाड़ करता है। मानवीय संवेदनाओं और चिंताओं की अभिव्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ती है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है। भाषा प्रतीकात्मक शैली में है जहाँ रूपक का वातावरण अति प्रशंसनीय है।
(ii) तद्भव, तत्सम, देशज और विदेशज शब्दों का सम्मिलित रूप कविता का सौंदर्य बोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
(iii) बूढा, चौकीदार, खुरदरा, झुर्रियाँदार ये सभी बिम्बात्मक शब्द रूपक के रूप में कविता को सारगर्भित बना रहे हैं। मुक्तक छंद की कविता होते हुए भी कविता में संगीतमयता आ गई है।
(iv) भाषा परिष्कृत और साफ-सुथरी है। यहाँ यथार्थ का खुरदरापन मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी।

2. दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन ।
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से ।
खाने को जहर हो जाने से:
बचाना है – जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्याश का प्रसंग लिखें।
काव्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कर की हत्या।

उत्तर-
(क) कविता– एक वृक्ष की हत्या।
कवि- कुँवर नारायण।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कहा है कि पर्यावरण, सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्र एवं मानवता के दुश्मन की आशंका हमेशा है। इनके दुश्मन हमारे बीच विद्यमान हैं और हमें उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इनकी रक्षा हेतु हमें आगे आना होगा। पर्यावरण की रक्षा करके या वृक्षों की रक्षा करके ही हम मनुष्य का बचा सकते हैं। इनके रक्षार्थ हमें इनके प्रति संवेदनशील होना होगा।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि कुँवर नारायण जी आने वाले पर्यावरण संकट की और ध्यानाकर्षण कराते हैं। घर को लुटेरों का खतरा होता है। शहर को नादिरों से खतरा है। इन्हें बचाने की आवश्यकता है। देश को देश के दुश्मनों से रक्षा करने की आवश्यकता है। अर्थात् मनुष्यता और सभ्यता की रक्षा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए और इसके लिए हमें सचेत होना होगा। कवि आगे कहते हैं कि आने वाले दिनों में पर्यावरण प्रदूषण की खतरा मँडरा रहा है। हम वृक्ष का महत्व नहीं देते हैं और उसे बिना सोचे-समझे काट रहे हैं। वृक्ष, पौधे, वनस्पतियों के बचाव से मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा हो सकती है। हमें नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाने को जहर होने से, जंगल को मरुस्थल होने से एवं मनुष्य को जंगल होने से बचाना होगा। इस बचाव कार्य के सदुपायों पर चिंतन करते हुए पर्यावरण, सभ्यता एवं मनुष्यता की हर हाल में रक्षा करनी होगी। इसके लिए वृक्ष की महत्ता को समझना होगा। उसकी हत्या नहीं करनी होगी।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि समस्त प्रबुद्ध वर्गों के लिए गंभीर चिंता का सवाल खड़ा कर दिया है। यह पद्यांश आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक बोध कराता है। सहजता और स्वाभाविकता की अंत:कलह कासे पर्यावरण की सुरक्षा की ओर अग्रसर करता है। केवल कोरे कागज पर या खोखले नारेबाजी से पर्यावरण की सुरक्षा का चिंतन करने के बजाय प्रयोगवादी धरातल पर अंजाम देने की आवश्यकता पर कवि जोर दिया है। यदि प्रबुद्ध वर्ग ऐसा नहीं करता है तो शाश्वता के कोपभाजन का शिकार उसे निश्चित रूप से होना पड़ेगा।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है।
(i) भाषा सरल और सुबोध है। यहाँ अलंकार की योजना से रूपक, उपमा और अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।
(iii) कविता में मानवीकरण की प्राथमिकता है।
(iv) शैली की दृष्टि से चित्रमयी शैली अति स्वाभाविक रूप में उपस्थित है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग कविता में पूर्ण व्यंजकता उपस्थित करती है।
(vi) भाषा और विषय की विविधता कविता के विशेष गुण हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न -सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1. कंवर नारायण कैसे कवि हैं ?
(क) रहस्यवादी
(ख) छायावादी
(ग) हालावादी
(घ) संवेदनशील

प्रश्न 2. “एक वृक्ष की हत्या’ के कवि कौन हैं ?
(क) अज्ञेय
(ख) पंत
(ग) कुँवर नारायण
(घ) जीवनानंद दास
उत्तर- (ग) कुँवर नारायण

प्रश्न 3. “एक वृक्ष की हत्या’ किस काव्य-संग्रह से संकलित है ?
(क) इन्हीं दिनों
(ख) हम-तुम
(ग) आमने-सामने
(घ) चक्रव्यूह
उत्तर- (क) इन्हीं दिनों

प्रश्न 4. कुँवर नारायण आधुनिक युग की किस काव्य-धारा के कवि हैं?
(क) प्रगतिवादी
(ख) प्रयोगवादी
(ग) यथार्थवादी
(घ) नयी कविता
उत्तर- (घ) नयी कविता

प्रश्न 5. ‘एक वृक्ष की हत्या’ में वृक्ष को किस रूप में कवि ने प्रस्तुत किया है ?
(क) वृक्ष के रूप में
(ख) घर के रूप में
(ग) मानव के रूप में
(घ) पशु-के रूप में
उत्तर- (ग) मानव के रूप में

प्रश्न 6. कुँवर नारायण ने पेड़ की डाल की तुलना किससे की है ? ।
(क) लाठी से
(ख) राइफल से
(ग) भाला से
(घ) तोप से
उत्तर- (ख) राइफल से

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1. कुंवर नारायण का जन्म ………….. में हुआ।
उत्तर- लखनऊ

प्रश्न 2. कुंवर नारायण के काव्य की विशेषताएं हैं नये विषय और ……. की विविधता है।
उत्तर-भाषा

प्रश्न 3. घर को बचाना हो ……..से।
उत्तर-लुटेरों

प्रश्न 4. वृक्ष के काटे जाने के माध्यम से कवि ने …. प्रदूषण पर टिप्पणी की है।
उत्तर- पर्यावरण

प्रश्न 5. ‘एक वृक्ष की हत्या’ …………… कविता है।
उत्तर- समसामयिक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कुँवर नारायण कैसे कवि हैं ?
उत्तर- कुंवर नारायण मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलने वाले कवि हैं।

प्रश्न 2. कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त किन विधाओं को समृद्ध किया है ?
उत्तर- कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त कहानी, निबंध और समीक्षा के क्षेत्र को समृद्ध किया है।

प्रश्न 3. कुंवर नारायण को कौन-कौन पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर- कुँवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार, आशान पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार के अलावा व्यास-सम्मान, कबीर सम्मान और लोहिया सम्मान प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 4. कवि घर लौटा तो कौन नहीं था?
उत्तर- कवि अबकी बार घर लौटा तो चौकीदार की तरह घर के दरवाजे पर तैनात रहने वाला बूढ़ा वृक्ष नहीं था।

प्रश्न 5. “एक वृक्ष की हत्या’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है
उत्तर- एक वृक्ष की हत्या’ का वर्ण्य-विषय है नाना प्रकार के प्रदूषण और छीजते मानव-मूल्या ।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “एक वृक्ष की हत्या” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग गाँव के एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से जुड़ा हुआ है।

बहुत दिनों के बाद जब कवि घर यानी अपने गाँव लौटा तो उसे बड़ा अचरज हुआ। कवि के घर के दरवाजे पर चौकीदार के रूप में तैनात जो बूढ़ा वृक्ष था, वह नहीं था। वृक्ष की हत्या हो चुकी थी।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वृक्ष के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता है। उसकी उस वृक्ष के साथ आत्मीयता बढ़ गयी थी। वृक्ष घर का चौकीदार था। वह बूढ़ा हो चुका था। आज उसका नहीं होना कवि के लिए पीडादायक था।

एक बूढ़े वृक्ष की हत्या के माध्यम से कवि ने मानवीय जीवन की विसंगतियों पर भी सम्यक् प्रकाश डाला है। आज मनुष्य कितना क्रूर और निष्ठुर बन गया है। अपनी ही जड़ें काटने लगता है। इस कविता में बूढ़े वृक्ष की हत्या यानी संस्कृति की हत्या, बुजुर्गों के प्रति अनादर और अनास्था का भाव परिलक्षित होता है। हम चौकीदार सदृश बूढ़े वृक्ष या घर के बूढ़े किसी का भी सम्मान और सद्व्यवहार नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्या हो गया है। वृक्ष हमारी संस्कृति, सभ्यता, अभिभावक, चौकीदार आदि के प्रतीक के रूप में आया है। इन पंक्तियों में कवि ने एक वृक्ष को प्रतीक मानकर जो संवेदनात्मक भाव प्रकट किया है, वह वंदनीय है, प्रशंसनीय है।

प्रश्न 2. “पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल-पत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता।”

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के एक वृक्ष की आत्महत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बूढ़े वृक्ष की शारीरिक संरचना से जुड़ा हुआ है।

कवि ने बूढ़े वृक्ष का मानवीकरण कर उसमें जीवंतता का दर्शन कराया है। जिस प्रकार बूढ़ा आदमी उम्र की ढलान पर अपने सौंदर्य को खो देता है, ठीक उसी प्रकार बूढ़े वृक्ष की भी स्थिति है। बूढ़े वृक्ष का शरीर सख्त हड्डियों का ढाँचा है। उसके छिलके पुराने चमड़े की तरह दिखते हैं। पूरे तन में पपड़ियाँ पड़ गयी हैं। चेहरे और सारे शरीर में झुर्रियाँ दिखायी पड़ती हैं। शरीर में खुरदुरापन आ गया है। पुराना हो जाने के कारण शरीर मैला-कुचैला-सा दिखता है। सौंदर्य खत्म हो चुका है। उसकी सूखी डाल राइफिल की तरह दिखती है। फूल और पत्तियों से युक्त पगड़ी पहने हुए वृक्ष का रंग-रूप लगता है मानो कोई चौकीदार सदेह खड़ा है। उसकी जड़ें फटी हुई हैं, दरकी हुई हैं-लगता है कि बूढ़े वृक्ष ने अपने पाँवों में फटा-पुराना जूता पहन रखा हो। वह जूता चरमर-चरमर करता है। वृक्ष ऐसे खड़ा है लगता है कि वह अक्खड़ता के साथ अपने . बल-बूते खड़ा है।

उक्त काव्य पक्तियों में कवि ने बूढ़े वृक्ष का चित्रण एक बूढ़े झुरींदार खुरदरे चेहरेवाले, मैले-कुचैले कपड़े पहने मनुष्य से किया है। उसने वृक्ष को मानव के रूप में चित्रित कर उसकी उपयोगिता और महत्ता को सिद्ध किया है। बूढ़ा वृक्ष हमारे लिए घर का बूढ़ा अभिभावक है। उसकी उपयोगिता और जीवंतता हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। वह हमारी संस्कृति का, सभ्यता का, कर्तव्यनिष्ठता का, अभिभावक का, लोकहित का संरक्षण करता है, पोषण करता है, रक्षा करता है। अतः, वह बूढ़ा वृक्ष मात्र वृक्ष ही नहीं है वह पहरूआ है अभिभावक हैं, घर का चौकस समझदार और भरोसेमंद संरक्षक है।

प्रश्न 3. धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में,
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग एक बूढ़े वृक्ष को चौकीदार के रूप में चित्रित किए जाने से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि कोई भी मौसम हो, धूप अथवा बारिश हो, चाहे गर्मी या सर्दी का माह हो, बूढ़े वृक्ष को देखकर लगता है कि वह हमेशा सतर्कता के साथ, निडरता और तत्परता के साथ, खाकी-रूपी वर्दी में सबकी रखवाली में खड़ा है। कवि की ऐसी कल्पना से लगता है कि बूढा वृक्ष एक मामूली वृक्ष नहीं है। बल्कि वह युगों-युगों से हमारी सुरक्षा का प्रहरी है। हमारी संस्कृति का पोषक है। हर मौसम में एक विश्वसनीय, ईमानदार पहरेदार के रूप में हमारी रक्षा कर रहा है।

प्रश्न 4. दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छाँव में।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग एक बूढ़े वृक्ष और कवि के बीच के संबंध से संबंधित है।

जब कभी कवि अपने घर लौटता था तो बूढ़ा वृक्ष दूर से ही ललकारते हुए पूछता था— ठहरो, बोलो तुम कौन हो? कवि जवाब देता था मैं तुम्हारा दोस्त ! तब कवि घर की ओर पग बढ़ाता था। यहाँ मानवीय संबंधों, पहरेदार के रूप में अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता के प्रति दृढ रहने कवि और बूढ़े वृक्ष के बीच के आत्मीय संबंधों आदि का पता चलता है। कवि की कल्पना ने बूढ़े वृक्ष को अभिभावक, चौकीदार पहरूओ के रूप में चित्रित कर मानवीयता प्रदान किया है। यहाँ बूढ़ा वृक्ष निर्जीव नहीं सजीव है। उसमें चेतना है, कर्तव्यनिष्ठता है, आत्मीयता है।

प्रश्न 5. “दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से।”

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि और एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से संबंधि त है। कवि मन ही मन कल्पना करता है कि यह बूढा वृक्ष हमारा पहरूआ है। वह उसे सजीव मानव के रूप में देखता है, चित्रित करता है। कवि के मन में पूर्व से ही संशय बैठा हुआ है कि हमारे चारों ओर शत्रुओं की तादाद अच्छी है, उनसे अपनी सुरक्षा के साथ घर, शहर और देश को भी बचाना है क्योंकि बाह्य शत्रुओं से तो देश की रक्षा जरूरी ही है। देश के भीतर जो शत्रु हैं उनसे भी लड़ते हुए अस्तित्व की रक्षा करनी है।

कवि यहाँ आंतरिक शत्रुओं की ओर इंगित करते हुए उनसे सावधान रहने की सलाह देता है। कवि का मन पारखी है, वह अपनी पैनी नजर से घर में, शहर में, देश में, रह रहे शत्रुओं को पहचानने की क्षमता रखता है, उनसे दूर रहकर, सचेत रहकर सावधानीपूर्वक अस्तिव और अस्मिता की रक्षा की जा सकती है। भीतरी शत्रुओं से बचाव सर्वाधिक जरूरी है। वे अपने स्वार्थ और संकीर्णताओं के चलते हमारी संस्कृति, प्रगति और आपसी शांति को भंग कर देंगे। कवि की पीड़ा, सोच अत्यंत ही प्रासंगिक है। देश तभी सबल, सुरक्षित रहेमा, शहर सुरक्षित तभी रहेगा जब घर शांतिमय, सुविकसित रूप में रहेगा। यहाँ कवि ने सूक्ष्म रूप से हमारी राष्ट्रीय समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भीतरी शत्रुओं से सावधान रहने को कहा है।

प्रश्न 6. “बचाना है
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से।
खाने को जहर हो जाने से।”
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि के द्वारा सुझाए गए उपायों से है। हम कैसे अपने अस्तित्व, इतिहास और अस्मिता की रक्षा कर सकते हैं ?

उक्त काव्य पक्तियों के माध्यम से कवि ने कहा है कि ऐ राष्ट्रवीरों ! सचेत हो जाओ। बाहरी शत्रुओं से ज्यादा भीतरी शत्रुओं से सांस्कृतिक संकट छहराने का खतरा ज्यादा है। अगर समय रहते हम नहीं चेते, नहीं संभले तो नदियाँ नाला के रूप में परिवर्तित हो जाएंगी, हवा शुद्ध न रहकरधुआँ के रूप में वायुमंडल में पसर जाएगी। आज हमारे जो भोज्य पदार्थ हैं वे जहरीले हो जाएंगे। बदलते जीवन-मूल्यों, पर्यावरण के दूषित स्वरूप एवं आंतरिक अव्यवस्थाओं के कारण सबका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। कहीं इस जहरीले वातावरण में हम भी जहरीला न बन जायें। अतः, समय रहते सचेत और जागरूक होना आवश्यक है ताकि गहराते संकट से हम बच सकें।

प्रश्न 7. बचाना है-जंगल को मरुस्थल
हो जाने से,
बचाना है-मनुष्य को जंगली
हो जाने से।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग हमारी प्रकृति, राष्ट्र और मानव से जुड़ा हुआ है। कवि ने कविताओं के माध्यम से सभी को सतर्क और जागरूक होने का संदेश दिया है।

कवि कहता है कि जंगल की रक्षा अत्यावश्यक है। जंगल नहीं रहेगा तो हमारी संस्कृति – सुरक्षित नहीं रहेगी न इतिहास ही सुरक्षित रहेगा। सृष्टि का भी विनाश हो जाएगा। मनुष्य भी जंगली रूप को पुनः अख्तियार कर लेगा। मानव और जंगल एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों का रहना संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए बहुत जरूरी है। जंगल में ही मनुष्य वास करता था।
धीरे-धीरे जंगली स्वरूप को बदला और आज विकास के पथ पर दिनोंदिन अग्रसर होता जा रहा है।

अतः, कवि अंत में जोरदार शब्दों में कहता है कि जंगल को रेगिस्तान बनाने से, हे मानवों ! बचाओ। अगर जंगल का अस्तित्व मिटा तो तुम्हारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाए। अतः, कवि की दृष्टि में जंगल और जीवन दोनों का स्वस्थ, सुरक्षित और हरा-भरा रहना आवश्यक है। जंगल और मानव का अटूट संबंध युगों-युगों से रहा है, आगे भी रहेगा।

शब्दार्थ

  • अक्खड़ : विपरीत परिस्थितियों में डटा रहने वाला
  • बल-बूता : शक्ति-सामर्थ्य
  • अन्देशा : आशंका
  • नादिरों : नादिरशाह नामक ऐतिहासिक लुटेरे और आक्रमणकारी की तरह के क्रूर व्यक्ति

About the author

My name is Najir Hussain, I am from West Champaran, a state of India and a district of Bihar, I am a digital marketer and coaching teacher. I have also done B.Com. I have been working in the field of digital marketing and Teaching since 2022

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