प्रेम अयनि श्री राधिका – bihar board class 10 hindi solutions chapter 2 kavya khand

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 हिंदी bihar board class 10 hindi solutions chapter 2 kavya khand – प्रेम अयनि श्री राधिका – गोधूलि भाग 2 ,  Prem Ayani Shri Radhika in hindi के सभी पाठों का व्‍याख्‍या प्रत्‍येक अध्याय के समाधान सहित जानेंगे। उनमें से ज्यादातर प्रश्‍न बोर्ड परीक्षा में पूछे जा चुके हैं।

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bihar board class 10 hindi solutions chapter 2 kavya khand – प्रेम अयनि श्री राधिका

प्रेम अयनि श्री राधिका किवि परिचय

रसखान के जीवन के संबंध में सही सूचनाएँ प्राप्त नहीं होती, परंतु इनके ग्रंथ ‘प्रेमवाटिका’ (1610 ई०) में यह संकेत मिलता है कि ये दिल्ली के पठान राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचनाकाल जहाँगीर का राज्यकाल था । जब दिल्ली पर मुगलों का आधिपत्य हुआ और पठान वंश पराजित हुआ, तब ये दिल्ली से भाग खड़े हुए और ब्रजभूमि में आकर कृष्णभक्ति में तल्लीन हो गए । इनकी रचना से पता चलता है कि वैष्णव धर्म के बड़े गहन संस्कार इनमें थे । यह भी अनुमान किया जाता है कि ये पहले रसिक प्रेमी रहे होंगे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट होकर भक्त हो गए । ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ से यह पता चलता है कि गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें ‘पुष्टिमार्ग’ में दीक्षा दी । इनके दो ग्रंथ मिलते हैं – ‘प्रेमवाटिका और सुजान रसखान’ । प्रमवाटिका में प्रेम-निरूपण संबंधी रचनाएँ हैं और ‘सुजान रसखान’ में कृष्ण की भक्ति संबंधी रचनाएँ ।

रसखान ने कृष्ण का लीलागान पदों में नहीं, सवैयों में किया है । रसखान सवैया छंद में सिद्ध थे। जितने सरस, सहज, प्रवाहमय सवैये रसखान के हैं, उतने शायद ही किसी अन्य हिंदी कवि के हों । रसखान का कोई सवैया ऐसा नहीं मिलता जो उच्च स्तर का न हो । उनके सवैयों की मार्मिकता का आधार दृश्यों और बायांतर स्थितियों की योजना में है । वहीं रसखान के संवैयों के ध्वनि प्रवाह भी अपूर्व माधुरी में है। ब्रजभाषा का ऐसा सहज प्रवाह अन्यत्र दुर्लभ है । रसखान सूफियों का हृदय लेकर कृष्ण की लीला पर काव्य रचते हैं । उनमें उल्लास, मादकता और उत्कटता तीनों का संयोग है । इनकी रचनाओं से मुग्ध होकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा था -“इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिन हिन्दू क्यारिखें ।

सम्प्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि रसखान हिंदी के लोकप्रिय जातीय कवि हैं । यहाँ ‘रसखान रचनावली’ से कुछ छन्द संकलित हैं – दोहे, सोरठा और सवैया । दोहे और सोरठा में राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर कवि के रसिक हृदय की रीझ व्यक्त होती है और सवैया में कृष्ण और उनके ब्रज पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदगता मुखरित है।

प्रेम अयनि श्री राधिका पाठ का अर्थ

हिन्दी साहित्य में कुछ ऐसे मुस्लिम कवि हैं जो हिन्दी के उत्थान में अपूर्व योगदान दिये हैं। उन कवियों में रसखान का नाम की आदर के साथ लिया जाता है। रसखान सवैया छंद के प्रसिद्ध कवि थे। जितने सरस प्रहज, प्रवाहमय सवैये रसखान है, उतने शायद ही किसी अन्य हिन्दी कवि के हों। इनके सवैयो की मार्मिकता का आधार दृश्यों और वाह्ययांतर स्थितियों की योजना में है। रसखान सूफियों का हृदय लेकर कृष्ण की लीला पर काव्य रचते हैं। उनमें उल्लास, मादकता और उत्कटता का मणिकांचन संयोग है।

प्रस्तुत दोहे और सवैया में कवि कृष्ण के प्रति अटूट निष्ठा को व्यक्त किया है। राधा-कृष्ण के प्रेममय युगलरूप पर कवि के रसिक हृदय की रीझ व्यक्त होती है। पहले पद में कवि प्रेमरूपी वाटिका में प्रेमी और प्रेमिका का मिलन और उसके अंतर्मन में उठने वाले भावों को सजीवात्मक चित्रण किया है। माली और मालिन का रूपक देकर कृष्ण एवं राधा के प्रेमप्रवाह को तारतम्य बना दिया है। प्रेम का खजाना संजोने वाली राधा श्रीकृष्ण के रूपों पर वशीभूत है। एकबार मोहन का रूप देखने के बाद अन्य रूप की आसक्ति नहीं होती है। प्रेमिका चाहकर भी प्रेमी से अलग नहीं हो सकती है।

दूसरे पद में कवि श्रीकृष्ण के सन्निध्य में रहने के लिए सांसारिक वैभव की बात कौन कहें तीनों लोक की सुःख को त्याग देना चाहता है। ब्रज के कण-कण में श्रीकृष्ण का वास है। अतः वह ब्रज पर सर्वस्व अर्पण कर देना चाहता है।

प्रेम अयनि श्री राधिका – Prem Ayani Shri Radhika Question Answer

कविता के साथ – Prem Ayani Shri Radhika Question Answer

प्रश्न 1. कवि ने माली-मालिन किन्हें और क्यों कहा है ?
उत्तर- कवि ने माली-मालिन कृष्ण और राधा को कहा है। क्योंकि कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युग को प्रेम भरे नेत्र से देखा है। यहाँ प्रेम को वाटिका मानते हैं और उस प्रेम-वाटिका के माली-मालिन कृष्ण-राधा को मानते हैं। वाटिका का विकास माली-मालिन की कृपा पर निर्भर है। अत: कवि के प्रेम वाटिका को पुष्पित पल्लवित कृष्ण और राधा के दर्शन ही कर सकते हैं।

प्रश्न 2. द्वितीय दोहे का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रस्तुत दोहे में सवैया छन्द में भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अत्यन्त मार्मिक है। सम्पूर्ण छन्द में ब्रजभाषा की सरलता, सहजता और मोहकता देखी जा रही है। कहीं-कहीं तद्भव और तत्सम के सामासिक रूप भी मिल रहे हैं। कविता में संगीतमयता की धारा फूट पड़ी है। अलंकार योजना से दृष्टांत अलंकार के साथ अनुप्रास एवं रूपक का समागम प्रशंसनीय है। माधुर्यगुण के साथ वैराग्य रस का मनोभावन चित्रण हुआ है।

प्रश्न 3. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर- कवि कृष्ण और राधा के प्रेम में मनमुग्ध हो गये हैं। उनके मनमोहक छवि को देखकर मन पूर्णतः उस युगल में रम जाता है। इन्हें लगता है कि इस देह से मन रूपी मणि को कृष्ण ने चुरा लिये हैं। चित्त राधा-कृष्ण के युगल जोड़ी में लग चुका है। अब लगता है कि यह शरीर मन एवं चित्त रहित हो गया है। इसलिए चित्त हरने वाले कृष्ण को चोर कहा गया है। उनकी मोहनी मूरत मन को इस प्रकार चुराती है कि कवि अपनी सुध खो बैठते हैं। केवल कृष्ण ही स्मृति पटल पर अंकित रहते हैं और कुछ भी दिखाई नहीं देता है।

प्रश्न 4. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रेम-रसिक कवि रसखान द्वारा रचित सवैये में कवि की आकांक्षा प्रकट हुई है। इसके माध्यम से कवि कहते हैं कि कृष्ण लीला की छवि के सामने अन्यान्य दृश्य बेकार हैं। कवि कृष्ण की लकुटी और कामरिया पर तीनों लोकों का राज न्योछावर करने देने की इच्छा प्रकट करते हैं। नन्द की गाय चराने की कृष्ण लीला का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनके चराने में आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भुला जाना स्वाभाविक है। ब्रज के वनों के ऊपर करोड़ों इन्द्र के धाम को न्योछावर कर देने की आकांक्षा कवि प्रकट करते हैं।

प्रश्न 5. व्याख्या करें :
(क) मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं।
(ख) रसखानि कबौं इन आँखिन सौ ब्रज के बनबाम तझम निहारौं।

उत्तर-

(क) प्रस्तुत दोहे में कवि राधिका के माध्यम से श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित हो जाना चाहता है। जिस दिन से श्रीकृष्ण से आँखें चार हुई उसी दिन से सुध-बुध समाप्त हो गई। पवित्र चित्त को चुराने वाले श्रीकृष्ण से पलक हटाने के बाद भी अनायास उस मुख-छवि को देखने के लिए विवश हो जाती है। वस्तुत: यहाँ कवि बताना चाहता है कि प्रेमिका अपने प्रियतम को सदा अपने आँखों में बसाना चाहती है।

(ख)प्रस्तुत पंक्ति कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा रचित हिंदी पाठ्य-पुस्तक के “करील में कुंजन ऊपर वारों” पाठ से उद्धत है। प्रस्तुत पंक्ति में कवि ब्रज पर अपना जीवन सर्वस्थ न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित करते हैं। कवि इसमें ब्रज की बागीचा एवं तालाब की महत्ता को उजागर करते हुए निरंतर उसकी शोभा देखते रहने की आकांक्षा प्रकट करते हैं।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि ब्रज की बागीचा एवं तालाब अति सुशोभित एवं अनुपम हैं। इन आँखों से उसकी शोभा देखते बनती है। कवि कहते हैं कि ब्रज के वनों के ऊपर, अति रमनीय, सुशोभित मनोहारी मधुवन के ऊपर इन्द्रलोक को भी न्योछावर कर दूँ तो कम है। ब्रज के मनमोहक तालाब एवं बाग की शोभा देखते हुए कवि की आँखें नहीं थकती, इसकी शोभा निरंतर निहारते रहने की भावना को कवि ने इस पंक्ति के द्वारा बड़े ही सहजशैली में अभिव्यक्त किया है। कवि को कृष्ण-लीला स्थल के कण-कण से प्रेम है। कृष्ण की सभी चीजें उन्हें मनोहारी लगती हैं।

प्रश्न 6. ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका’ पाठ का भाव/सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- प्रेम-अयनि श्री राधिका’ में कृष्ण और राधा के प्रेममय रूप पर मुग्ध रसखान कहते हैं कि राधा प्रेम का खजाना है और श्रीकृष्ण अर्थात् नंदलाल साक्षात् प्रेम-स्वरूप। ये दोनों ही ‘ प्रेम-वाटिका के माली और मालिन है जिनसे प्रेम-वाटिका खिली-खिली है। मोहन की छवि ऐसी है कि उसे देखकर कवि की दशा धनुष से छूटे तीर के तहत हो गई है। जैसे धनुष से छूटा हुआ तीर वापस नहीं होता, वैसे ही कवि का मत एक बार कृष्ण की ओर जाकर पुनः अन्यत्र नहीं जाता। कवि का मन माणिक, चित्तचोर श्रीकृष्ण चुरा कर ले गए। अब बिना मन के वह फंदे में फंस गया है। वस्तुत: जिस दिन से प्रिय नन्द किशोर की छवि देख ली है, यह चोर मन बराबर उनकी ओर ही लगा हुआ है।

‘करील के कुंजन ऊपर वारौं’ सवैया में कवि रसखान की श्रीकृष्ण पर मुग्धता और उनकी एक-एक वस्तु पर ब्रजभूमि पर अपना सर्वस्व क्या तीनों लोक न्योछावर करने की भावमयी उत्कंठा एवं उद्विग्नता के दर्शन होते हैं। रसखान कहते हैं-श्रीकृष्ण जिस लकुटी से गाय चराने जाते हैं
और जो कम्बल ले जाते हैं, अगर मुझे मिल जाए तो मैं तीनों लोको का राज्य छोड़कर उन्हें ही लेकर रम जाऊँ। अगर ये हासिल न हों, केवल नंद बाबा की गौएँ ही चराने को मिल जाएँ तो आठों सिद्धियों और नौ निधियाँ छोड़ दूँ। कवि का श्रीकृष्ण और उनकी त्यागी वस्तुएँ ही प्यारी नहीं हैं वे उनकी क्रीडाभूमि व्रज पर भी मुग्ध है। कहते हैं और-“तो और संयोगवश मुझे ब्रज के जंगल और बाग और वहाँ के घाट तथा करील के कुंज जहाँ वे लीला करते थे, उनके ही दर्शन हो जाएँ तो सैकड़ों इन्द्रलोक उन पर न्योछावर कर दूं।” रसखान की यह अन्यतम समर्पण-भावना और विदग्धता भक्ति-काव्य की अमूल्य निधियों में है।

भाषा की बात

प्रश्न 1. समास-निर्देश करते हुए निम्नलिखित पदों के विग्रह करें –
प्रेम-अनि, प्रेमबरन, नंदनंद, प्रेमवाटिक, माली मालिन, साखानि, ‘चिनचोर, मनमानिक, बेमन, नवोनिधि, आठहुँसिद्धि, बमबाग, लिहपुर

उत्तर-

  • प्रेमआयनि – प्रेम की आयनि – तत्पुरुष समास
  • प्रेम-बरन – प्रेम का वरन – तत्पुरुष समास
  • नंदनंद – नंद का है जो नंद – कर्मधारय समास
  • प्रेमवाटिका – प्रेम की वाटिका – तत्पुरुष समास
  • माली-मालिन – माली और मालिन – द्वन्द्व समास
  • रसखानि – रस की खान – तत्पुरुष समास
  • चित्तचोर – चित्त है चोर जिसका अर्थात कृष्ण – बहुव्रीहि समास
  • मनमानिक – मन है जो मानिक – कर्मधारय समास
  • बेमन – बिना मन का – अव्ययीभाव समास
  • नवोनिधि – नौ निधियों का समूह – द्विगु समास
  • आठसिद्धि – आठों सिद्धियों का समूह – द्विगु समास
  • बनबाग – बन और बाग – द्वन्द्व समास
  • तिहपुर – तीनों लोकों का समूह – द्विगु समास

प्रश्न 2. निम्नलिखित के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखें –
राधिका, नंदनंद, नैन, सर, आँख, कंज, कलधौत

उत्तर-

राधिका – कमला, श्री, प्रेम, अयनि।
नदनंद – कृष्ण, नंदसुत, नंदतनय।
नैन – आँख, लोचन, विलोचन।
सर – वाण, सरासर, तीर।
आँख – नयन, अश्नि, नेत्रा
कुंग – बाग, वाटिका, उपवन।

प्रश्न 3. कविता से क्रियारूपों का चयन करते हुए उनके मूल रूप को स्पष्ट करें।
उत्तर- विद्यार्थी शिक्षक के सहयोग से स्वयं करें।

काव्यांशों पर आधारित आई-नसंबंधी प्रश्नोत्तर

1. प्रेम अवनि श्री साधिका, क-बान नैदलंदा
केन-बाटिका के दोऊ, माली मनिला
मोहन छवि स्लखन लखि अब तुम अपने नाहित
अंचे आवत धनुष से बटे सर से जाहिक
में मन मानिक लै मयको चितचोर नंदनंदा
आब बेबन का कसरी फेर के कंदा
प्रीतम नन्दकिशोर, जादिन ते नैनति लम्बी
मन पावन चितचोर, पालक ओट नहिं करि सको

प्रश्न
(क) कविता एवं कवि का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर-

  • (क) कवि- रसखाना कविता प्रेम अयनि श्री राधिका।
  • (ख) प्रस्तुत कविता में हिंदी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि रसखान श्री कृष्ण भक्ति में अपनी तल्लीनता का मार्मिक वर्णन किया है। श्री कृष्ण भक्ति में कवि आनंद विभोर होकर राधा-कृष्ण के युगल रूप को अपनी भक्ति भावना का आधार बताया है। राधा-कृष्ण की सुंदरता समस्त रसिक हृदय को आकर्षित करती है।
  • (ग) सरलाई प्रस्तुत कविता में राधा-श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना की मार्मिकता को तथा राधा-कृष्ण के युगल सौंदर्य रूप का वर्णन करते हुए रसखान कहते हैं कि श्री राधिका प्रेम का खजाना है और श्री कृष्ण प्रेम के रंग हैं तथा प्रेम वाटिका का श्री कृष्ण और राधा दोनों माली और मालिन है। कवि रसखान श्री कृष्ण के मोहनी-सूरत को देख-देख कर उनके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। प्रयत्न करने पर भी उनका नेत्र श्री कृष्ण की ओर ही बार-बार आकर्षित हो जाता है। जैसे धनुष से छूटा हुआ वाण वापस नहीं आ सकता है उसी प्रकार उनका हृदय से निकला हुआ प्रेम श्री कृष्ण भक्ति की ओर ही आकर्षित है। रसखान कहते हैं कि जो मेरे पास मनरूपी रत्न था उसे तो नन्दलाल ने ही चुरा लिया। अब तो मैं बेमन हो गया हूँ। मैं श्री कृष्ण के प्रेम फंदे में फसकर छटपटा रहा हूँ। जबतक मेरे पवित्र मन को चुराने वाले उस चित्तचोर कृष्ण के आने की राह में अपनी पलक को यहाँ से नहीं हटाऊँगा।
  • (घ) भाव सौंदर्य प्रस्तुत कविता में रसखान कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर रीझ गये हैं। राधा-कृष्ण की सुंदरता में अपने आप को समर्पित कर देना चाहते हैं। उन दोनों के प्रति अपनी भक्ति भावना की मार्मिकता को स्पष्ट रूप से रखते हैं।
  • (ङ) काव्य-सौंदर्भ –
    • (i) यहाँ भाव के अनुसार भाषा का वर्णन है।
    • (ii) ब्रजभाषा की प्राथमिकता होते हुए भी ब्रजभाषा का देशज रूप तो कहीं-कहीं तत्सम रूप भी दिखाई पड़ते हैं।
    • (iii) यह कविता दोहे छंद में ली गई है। इसलिए भाषा सरस, सहज और प्रवाहमय हो गई है।
    • (iv) यहाँ शृंगार रस के साथ माधुर्यगुण की छटा देखने को मिलती है।
    • (v) राधा-कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन भावमयी है।
    • (vi) अलंकार की योजना से अनुप्राण की छटा एवं रूपक की आवृत्ति कविता के भाव में सहायक है।

2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूंपुर की तजिडारौं।
आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नंद की गाइ चराइ बिसा ।।
रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

प्रश्न (क) कविता एवं कार का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर-
(क) कविता- करील के कुंजन ऊपर वारौं।
कवि – रसखान।
(ख) प्रस्तुत कविता में भक्ति भावना के रसिक कवि रसखान श्री कृष्ण के भक्ति के प्रति अपने आप को तो समर्पित कर देना ही चाहते हैं, साथ ही जीवन के संपूर्ण सुख-सुविधाओं को कृष्ण और उनके ब्रज पर न्योछावर कर देना चाहते हैं।

(ग) प्रस्तुत सवैया में कवि रसखान का हृदय, कृष्ण और ब्रज की सुन्दरता पर समर्पित है। अत: कवि अपनी आकांक्षा प्रकट करते हुये कहते हैं कि ब्रज के बगीचे के ऊपर अपनी सारी सुख-सुविधायें न्योछावर कर देना चाहता हूँ। लाठी और कंबल धारण कर उस नंदलाल के रूप सौंदर्य पर तीनों लोक के राज तथा सुख-सुविधा को मैं समर्पित कर देना चाहता हूँ। यहाँ तक कि आठों सिद्धियों और नवा सिधि के द्वारा जो सुख मुझे प्राप्त है उन सभी सुखों के नन्द की गाय चराने वाले श्री कृष्ण की भक्ति भावना में भुला देना चाहता हूँ। पुनः रसखान कहते हैं कि ब्रज के इन सुन्दर बगीचों एवं सुन्दर तालाबों को जैसे लगता है कि मैं अपने दोनों आँखों से हमेशा देखता रहूँ। ब्रज के सभी चीजों में श्री कृष्ण के सभी रूपों में आनंद की अनुभूति होती है। करोड़ों इंद्र के भवन-रूपी सुख-सुविधा को ब्रज के बगीचों पर जहाँ श्री कृष्ण मधुर बाँसुरी बजाते हैं
और गायें चराते हैं उसपर न्योछावर कर देना चाहता हूँ।

(घ) भाव सौंदर्य प्रस्तुत सवैया में कवि के रसिक मन कृष्ण और उनके ब्रज-पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित है। इसमें कवि अपनी संपूर्ण सुख-सुविधा को ब्रज के बगीचे एवं श्री कृष्ण की भक्ति भावना पर समर्पित कर अपने जीवन को सार्थक बनाता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य- (i) यहाँ सवैया, छंद में भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अत्यंत मार्मिक है।
(ii) संपूर्ण छंद में ब्रजभाषा की सरलता, सहजता और मोहकता देखी जा रही है।
(iii) कहीं-कहीं तद्भव के और तत्सम के सामासिक रचना भी मिल रहे हैं।
(iv) कविता में संगीतमयता की धारा फूट पड़ी है।
(v) अलंकार योजना से दृष्टांत अलंकार के साथ अनुप्रास एवं रूपक का समागम प्रशंसनीय है।
(vi) माधुर्यगुण के साथ वैराग रस का मनोभावन चित्रण हुआ है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें –

प्रश्न 1. रसखान किस काल के कवि थे?
(क) रीति काल
(ख) आदि काल
(ग) मध्य काल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर- 1558

प्रश्न 2. रसखान दिल्ली के बाद कहाँ चले गए ?
(क) बनारस
(ख) ब्रजभूमि
(ग) महरौली
(घ) हस्तिनापुर
उत्तर- (ख) ब्रजभूमि

प्रश्न 3. रसखान की भक्ति कैसी थी?
(क) सगुण
(ख) निर्गुण
(ग) नौगुण
(घ) सहस्रगुण
उत्तर- (क) सगुण

प्रश्न 4. रसखान ने प्रेम-अयनि’ किसे कहा है?
(क) कृष्ण
(ख) सरस्वती
(ग) राधा
(घ) यशोदा
उत्तर- (ग) राधा

प्रश्न 5. रसखान के चित्तचोर’ कौन हैं ?
(क) इन्द
(ख) श्रीकृष्ण
(ग) कामदेव
(घ) कंचन
उत्तर- (ख) श्रीकृष्ण

प्रश्न 6. रसखान ब्रज के वन-बागों पर क्या न्योछावर करने को तैयार हैं ?
(क) सैकड़ों स्वर्ण महल
(ख) सैकड़ों इन्द्रलोक
(ग) तीनों लोक
(घ) स्वर्गलोक
उत्तर- (ग) तीनों लोक

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-

प्रश्न 1. रसखान, का जन्म सन् ………….. में हुआ था।
‘उत्तर- 1558

प्रश्न 2. कृष्ण-भक्त कवियों में ………….अग्रणी हैं।
उत्तर- रसखान

प्रश्न 3. रसखान ने कवित्त, सबैया और ……….. छन्द में रचना की।
उत्तर- दोहा

प्रश्न 4. सुजन रसखान के अलवा रसखान की अन्य क्रुति है …………..
उतर- प्रेमवाटिका

प्रश्न 5. रसखान ने …………….. की दीक्षा ली थी।
उत्तर- पुष्टि माग

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. रसखान किस भक्ति-धारा के कवि थे?
उत्तर- रसखान सगुण भक्ति-धारा के कवि थे।

प्रश्न 2. रसखान ने किस भाषा में काव्य-रचना की है ?
उत्तर- रसखान ने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-रचना की है।

प्रश्न 3. दिल्ली के अतिरिक्त रसखान कहाँ रहे?
उत्तर- दिल्ली छोड़ने के बाद रसखान ने ब्रजभूमि में अपना जीवन व्यतीत किया।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1. प्रेम बाटिका के दोऊ, माली-मालिन
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के प्रेम-अयनि श्री राधिका काव्य-पाठ से ली  गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग राधा-कृष्ण के प्रेम-प्रसंग से संबंधित है।

कवि कहता है कि राधिकाजी प्रेमरूपी मार्ग हैं और श्रीकृष्णजी यानी नंद बाबा के नंद प्रेम रंग के प्रतिरूप हैं। दोनों की महिमा अपार है। कृष्ण प्रेम के प्रतीक हैं तो राधा उसका आधार है। प्रेमरूपी वाटिका के दोनों माली और मालिन हैं। दोनों की अपनी-अपनी विशेषता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक-दूसरे के अभाव में पूर्णता नहीं हो सकती। प्रेम का साकार या पूर्ण रूप राधा-कृष्ण की जोड़ी है।

प्रश्न 2. मोहन छवि स्सखानि लखि अब दग अपने नाहि।
अंचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं।।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के “प्रेम-अयनि श्री राधिका” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इस कविता का प्रसंग कृष्ण की छवि और रसखान की भक्ति से जुड़ा हुआ है।
कवि रसखान कहते हैं कि कृष्ण की मनोहारी छवि को निरख कर, देखकर आंखें वश में नहीं हैं। जैसे धनुष के खिंचते ही तीर सिर के ऊपर से गुजर जाता है और वह तीर वश में नहीं . रहता ठीक उसी प्रकार कृष्ण की छवि निहारकर आँखिया अब वश में नहीं रहती। कृष्ण के रूप-सौंदर्य में आँखें ऐसी खो गयी हैं कि सुध-बुध का ख्याल ही नहीं रहता। इसमें कृष्ण के प्रति रसखान की अगाध प्रेम-भक्ति और आस्था का ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 3. मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नंदनंदा
अब बेमन मैं का करू परी फेर के फंदा

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इस कविता का प्रसंग श्रीकृष्ण के चित्तचोर छवि से है। रसखान कृष्ण के रूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मेरे मन के माणिक्य को, धन को, नंदबाबा के लाल कृष्ण ने चुरा लिया है। वे चित्त को वश में करनेवाले यानी चुरानेवाले हैं। अब मेरा मन तो उनके वश में हो गया है। मैं बेमन का हो गया हूँ। मुझे कुछ भी नहीं सूझता कि अब क्या करूँ। मैं कृष्ण के फेरे के फंदे में फंसकर लाचार हो गया हूँ। मेरा वश अवश हो गया है।
इन पंक्तियों में कृष्ण भक्ति की प्रगाढ़ता, तन्मयता, एकात्मकता एवं गहरी आस्था का सम्यक् चित्रण हुआ है।

प्रश्न 4. प्रीतमविशोरचलिते नैनति लाग्यो
मन पवन चित्तोर, पलक ओट नहिं करि सकी।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “प्रेम-अयनि श्री राधिका” काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इस कविता का प्रसंग श्रीकृष्ण के पवित्र-प्रेम के प्रति गहरी आस्था से है।
कवि रसखान कहते हैं कि परम प्रिय नंदकिशोर से जिस दिन से आँखें लड़ी हैं या लगी – हैं। उनके पवित्र मन ने चित्त को चुरा लिया है। उनकी छवि को पलकों की ओट से दूर नहीं किया जा सकता। कहने को भाव यह है कि कृष्ण के प्रति रसखान की गहरी आस्था है, विश्वास है, भरोसा है, प्रेम की भूख है। जबसे आँखों ने नंदकिशोर का दर्शन किया है तबसे मन का चैन छिन गया है। आँखें अपलक उनके दर्शन के लिए लालायित रहती है। इन पंक्तियों में कृष्ण के प्रति गहरी प्रेम-भक्ति को दर्शाया गया है।

प्रश्न 5. या लकुटी अख कामरिया पर राज तिहूँघुर की तजिडारौ!
आठहूँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराइ बिसारौं।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के करील के कुंजन ऊपर वारौं” काव्य पाठ से ली गयी हैं। इस कविता का प्रसंग श्री कृष्ण के विराट व्यक्तित्व के साथ नंदलाला की मोहक मनोहारी छवि की तुलनात्मक विवेचन से है।

रसखान कवि कहते हैं कि जो स्वयं तीनों लोकों का मालिक है, वह उसे त्याग कर एक छोटी-सी लकुटी और कंबल लेकर चरवाहा बना हुआ है। जिसकी सुख-सुविधा के लिये आठों सिद्धियाँ और नवनिधियाँ सदैव तत्पर रहती हैं, वह वैसे सुख का त्याग कर नंद की गायों को चराने में भूला हुआ है। यहाँ कृष्ण की लोक छवि की तुलना विराट लोकोत्तर छवि से की गयी है। कृष्ण स्वयं में सृष्टि के सृजक हैं, वे स्वयं सृष्टिकर्ता हैं। कितना अद्भुत है यह प्रसंग। कृष्ण अपने विराट व्यक्तित्व को भुलाकर सरल, सहज और मनमोहक छवि के साथ लोक-लीला में रमें हुये हैं। वे लोकोत्तर सुख-सुविधाओं को तजकर लोक जगत के बीच सहज भाव से बाल-लीलायें कर रहे हैं।

सारा संसार जिनके सहारे है वही व्यक्ति साधारण रूप में नंद के घर रहता है, उसकी गाय चराता है। रास-लीला किया करता है। स्वयं को उसने इतना भुला दिया है कि उसके अपने विराट व्यक्तित्व का अभाव ही नहीं होता। यहाँ कृष्ण के लोक कल्याणकारी मानवीय रूप का सफल चित्रण हुआ है। जिसमें गूढार्थ भी है, रहस्य भी है, साथ ही सहजता और सरलता भी है। यह कृष्ण के चरित्र की विशेषता है।

प्रश्न 6. रसखानी कबौ इन ऑखिन सौं ब्रज के क्नबाग तड़ाग निहारौ।
कोटिक रौ कलधौत के घाम करील के कुंजन ऊपर वारौ।।

व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘करील के कुंजन ऊपर वारौं’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य प्रसंग ब्रज भूमि की महिमा से जुड़ा हुआ है।
कवि ब्रज भूमि की महिमा का गुणगान करते हुये काव्य रचना करता है। कवि कहता है कि रसखान नानक कवि यानी स्वयं कब अपने आंखियों से ब्रज भूमि का दर्शन करेगा और स्वयं को धन्य-धन्य समझेगा। रसखान के मन के भीतर एक व्यग्रता है, अकूलता है, तड़प है, बेचैनी है, ब्रजभूमि के सौंदर्य को देखने की परखने की उस भूमि के बागों, वनों, तालाबों के दर्शन करने की।

इस प्रकार महाकवि रसखान ब्रजभूमि राधा-कृष्ण मय मानते हुये उसके प्रति आघात, आस्था और श्रद्धा रखते हैं। साथ ही उसकी पवित्रता, श्रेष्यठता और सौंदर्य के प्रति एक निर्मल भाव रखते हैं। करोड़ों-करोड़ इन्द्र के धाम ब्रज भूमि के कोटों की बगीचों पर न्योछावर है। ब्रज भूमि राधा-कृष्ण की लीला स्थली है, क्रीड़ा-क्षेत्र है, परमधाम है, सिद्ध लीला धान है।

शब्दार्थ

  • अयनि : गृह, खजाना
  • बरन : वर्ण, रंग
  • दग : आँख
  • अँचे : खिंचे
  • सर : वाण
  • मानिक : (माणिक्य) रत्न विशेष
  • चित : देखकर
  • लकुटी : छोटी लाठी
  • कामरिया : कंबल, कंबली
  • तिहूँपुर : तीनों लोक
  • बिसारौं : विस्मृत कर दूँ, भुला दूँ
  • तड़ाग : तालाब
  • कोटिक : करोड़ों
  • कलधौत : इन्द
  • वारौं : न्योछावर कर दूं
  • कुंजन : बगीचा (कुंज का बहुवचन)

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My name is Najir Hussain, I am from West Champaran, a state of India and a district of Bihar, I am a digital marketer and coaching teacher. I have also done B.Com. I have been working in the field of digital marketing and Teaching since 2022

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