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भारतमाता – Bihar Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 5 bharatmata लेखक परिचय
लेखक- सुमित्रानंदन पंत
जन्म- 20 मई 1900 ई०, अलमोड़ा जिला के कौसानी (उत्तराँचल)
मृत्यु- 28 दिसंबर 1977 ई०
पिता- गंगादत्त पंत
माता- सरस्वती देवी
पंत जी के माता का निधन इनके जन्म के छः घंटे के बाद हो गया, इसलिए इनका लालन-पालन प्रकृति के गोद में हुआ। इन्होंने प्राथमिक शिक्षा गाँव में तथा माध्यमिक शिक्षा बनारस में पाई। इन्होंने कुछ दिनों तक कालाकांकर जिले में रहने के बाद अपना सारा जीवन इलाहाबाद में बिताया।
प्रमुख रचनाएँ- उच्छवास, पल्लव, वीणा, ग्राम्या, स्वर्णधूलि, ग्रंथि, गुंजन, युगांत, युगवानी, स्वर्णकिरण, युगपथ, चिदंबरा तथा लोकायतन
कविता परिचय- प्रस्तुत कविता ‘भारतमाता‘ पंत जी की कविताओं का संग्रह ‘ग्राम्या‘ से संकलित है। इसमें भारत के दुर्दशा का चित्रण किया गया है।
भारतमाता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू-जल
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी।
कवि पंत जी भारतीय ग्रामीणों की दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है। जहाँ खेत सदा हरे-भरे रहते हैं किंतु यहाँ के निवासी शोषण की चक्की में पिसकर मजबूर दिखाई देते हैं। गंगा-यमुना के जल उनकी व्यथा के प्रतिक हैं। सीधे-साधे किसान अपनी दयनीय दशा के कारण अपने दुर्भाग्य पर आँसु बहा रहे हैं और उदास हैं।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन
वह अपने घर में
प्रवासिनी।
पंतजी भारतमाता के उन कर्मठ सपूत किसानों की दयनीय दशा एवं दुःखपूर्ण जीवन की करूण-कहानी प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि जमींदारों एवं सूदखोर साहूकारों के शोषण ने इन्हें अति गरीब, चेतनाशून्य बना दिया है। अपने मजबूरी के कारण अपने ऊपर हो रहे अन्याय को सिर झुकाए अपलक देखने को मजबूर हैं। वे अपनी अंदर की पीड़ा अन्दर-ही-अन्दर सहने को मजबूर हैं। सदियों की त्रासदी ने उनके जीवन को निराश बना दिया है। वे अपने घर में अपने अधिकारों से वंचित है।
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु-तल निवासिनी।
अंग्रेजी शासन की क्रुरता के कारण भारतमाता की तीस करोड़ संतान अर्द्धनग्न तथा अर्द्धपेट खाकर जीवन व्यतित करने को विवश हैं। इनमें प्रतिकार और विरोध करने की शक्ति नहीं है। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित, गरीब, पेड़ के नीचे गर्मी, वर्षा तथा जाड़ा का कष्ट सहन करते हैं।
स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी।
कवि पंत जी कहते हैं कि जिनकी पकी फसल सोने के समान दिखाई पड़ती है, पराधीनता के कारण वे शोषण के शिकार हैं। वे उनके हर अपमान, शोषण, अत्याचार आदि को सहन करते हुए धरती के समान सहनशील बने हुए हैं। अर्थात् वे अपने जुल्मों का विरोध न करके चुपचाप सहन कर लेते हैं। वे क्रुर शासन से इतने भयभीत हैं कि खुलकर रो भी नहीं सकते। देशवासियों की ऐसी दुर्दशा और विवशता देखकर कवि दुःख से भर जाता है कि जिस देश के वीरों की गाथा संसार में शरदपूर्णिमा की चाँदनी के समान चमकती थी, आपसी शत्रुता के कारण आज ग्रहण लगा अंधकारमय है।
चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान-मूढ़
गीता प्रकाशिनी।
कवि पंतजी कहते हैं कि अंग्रेजों के अत्याचार एवं शोषण से लोग उदास, निराश और हताश हैं, यानी वातावरण में घोर निराशा छायी हुई है। देशवासियों की ऐसी मन की स्थिति पर कवि आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिसके मुख की शोभा की उपमा चन्द्रमा से दी जाती थी, या फिर जहाँ गीता जैसे प्ररणादायी ग्रंथ की रचना हुई थी, उस देश के लोग अज्ञानता और मूर्खता के कारण गुलाम हैं।
सफल आज उसका तप संयम
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन-विकासिनी।
कवि सफलता पर आशा प्रकट करते हुए कहते हैं कि अहिंसा जैसे महान मंत्र का संदेश देकर लेगों के मन का भय, अज्ञान एवं भ्रम का हरण कर भारतमाता की स्वतंत्रता की प्राप्ति का संदेश दिया।
-:- भारतमाता पाठ का अर्थ -:-
छायावाद के चार स्तम्भों में एक सुमित्रानंदन पंत द्वारा चित्र भारतमाता शीर्षक कविता एक चर्चित कविता है। कवि प्रवृत्ति से छायावादी है, परन्तु उनके विचार उदार मानवतावादी है। इनकी प्रतिमा कलात्मक सूझ से सम्पन्न है। युगबोध के अनुसार अपनी काव्य भूमिका विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की विशेषता है।
प्रस्तुत कविता कवि की प्रसिद्ध कविता उनकी कविताओं के संग्रह ‘ग्राम्या’ से संकलित है। यह कविता आधुनिक हिन्दी के उत्कृष्ट प्रगीतों में शामिल की जाती है। इसमें अतीत के गरिमा, गान द्वारा अबतक भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो वास्तविक प्रतीत नहीं होता है। धन-वैभव शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता है। परन्तु कवि भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत किया है। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। ऐसी धारणा रखने वाली भारतमाता क्षुब्ध और उदासीन है।
शस्य श्यामला धरती आज धूल-धूसरित हो गई है। करोड़ों लोग-नग्न, अर्द्धनग्न हैं। अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी सुरसा की तरह फैलते जा रहे हैं। चारो तरफ अज्ञानता, अशिक्षा फैली हुई है। गीता की उपदेशिका आज किंकर्तव्य विमूढ़ बनी हुई है। जीवन की सारी भंगिमाएँ धूमिल हो गई है। वस्तुतः कवि यथातथ्यों के माध्यम सम्पूर्ण भारतवासियों को अवगत करना चाहता है।
भारतमाता – Bihar Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 5 bharatmata
प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है?
उत्तर- प्रथम अनुच्छेद में कवि ने भारतमाता के रूपों का सजीवात्मक रूप प्रदर्शित किया है।
गाँवों में बसनेवाली भारतमाता आज धूल-धूसरित, शस्य-श्यामला न रहकर उदासीन बन गई है।
उसका आँचल मैला हो गया है। गंगा-यमुना के निर्माण जल प्रदूषित हो गये हैं। इसकी मिट्टी में पहले जैसी प्रतिमा और यश नहीं है। आज यह उदास हो गई है।
प्रश्न 2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?
उत्तर- भारत को अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा था। इस देश पर अंग्रेजी हुकूमत कायम थी। यहाँ की जनता का कोई अधिकार नहीं था। अपने घर में रहकर पराये आदेश को मानना विवशता थी। परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी, काल के कुचक्र में फंसी विवश, भारत-माता चुपचाप अपने पुत्रों पर किये गये अत्याचार को देख रही थी। यहाँ की धरती दूसरे के अधीन थी। भारत माँ के पुत्र स्वतंत्र विचरण नहीं कर सकते थे। इसलिए कवि ने परतंत्रता को दर्शाते हुए मुखरित किया है कि भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी है।
प्रश्न 3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि ने दर्शाया है कि परतंत्र भारत की स्थिति दयनीय हो गई थी। अंग्रेजों ने सुसंपन्न, सुसंस्कृत, सभ्य, शिखित और सोने की चिडिया स्वरूप भारत को निर्धनता, दीनता की हालत में ला दिया था। परतंत्र भारतवासियों को नंगे बदन, भूखे रहना पड़ता था। यहाँ की तीस करोड़ जनता, शोषित पीड़ित, मूढ, असभ्य अशिक्षित, निर्धन एवं वृक्षों के नीचे निवास करने वाली थी। कवि ने भारतवासियों के दीन हालत की यथार्थता को दर्शाया है। अर्थात् तात्कालीन भारतीय मूढ़, असभ्य, निर्धन, अशिक्षित, क्षुधित का पर्याय बन गये थे।
प्रश्न 4. भारतमाता का ह्रास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर- विदेशियों के द्वारा बार-बार लूटने रौंदने से भारतमाता चित्र विकीर्ण हो गया है। मुगलों .. के बाद अंग्रेजों ने लूटना शुरू कर दिया है। आज यह दूसरों के द्वारा रौंदी जा रही है। जिस तरह धरती सब बोल सहन करती है उसी तरह यह भारतमाता भी सबका धौंस उपद्रव आदि सहज भाव से सहन करती है। चंद्रमा अनायास राहु द्वारा ग्रसित हो जाता है उसी तरह यह धरती भी विदेशी आक्रमणकारी जैसे राहु से ग्रसित हो जाया करती है।
प्रश्न 5. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञान मूठ क्यों कहता है ?
उत्तर- भारत सत्य-अहिंसा, मानवता, सहिष्णुता, आदि का पाठ सारे विश्व को पढ़ाता था। किन्तु आज इस क्षितिज पर अज्ञानता की पराकाष्ठा चारों तरफ फैल गई है। लूटखसोट, अलगाववाद बेरोजगारी आदि जैसी समस्या उसको नि:शेष करते जा रहे हैं। मुखमण्डल सदा सुशोभित रहनेवाली भारतमाता के चित्र धूमिल हो गये हैं। धरती, आकाश आदि सभी इसके प्रभाव से ग्रसित हो गये हैं। आज सर्वत्र अंधविश्वास, अज्ञानता का साम्राज्य उपस्थित हो गया है। इसी कारण कवि ने इसे ज्ञानमूढ कहा है।
प्रश्न 6. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर- विदेशियों द्वारा बार-बार पद-दलित करने के उपरान्त भी भारतमाता के सहृदयता के भाव को नहीं रौंदा गया है। इसकी सहनशीलता, आज भी बरकरार है। आज भी यह अहिंसा का पाठ पढ़ाती है। लोगों के भय को दूर करती है। सबकुछ खो देने के बाद भी यह अपने संतान. में वसुधैव कुटुम्बकम की ही शिक्षा देती है। यह भारतमाता के तप का ही परिणाम है कि उसकी संतान सहिष्णु बने हुए हैं।
प्रश्न 7. व्याख्या करें
(क) स्वर्ण शस्य पर पद-तल-लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
(ख) चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नम वाष्पाच्छादित।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के सुमित्रानंदन पंत रचित ‘भारत माता’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने परतंत्र भारत का साकार चित्रण किया है। भारतीय ग्राम के खेतों में उगे हुए फसल को भारत माता का श्यामला शरीर मानते हुए कवि ने कहा है कि भारत की धरती पर सुनहरा फसल सुशोभित है और वह दूसरे के पैरों तले रौंद दिया गया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि भारत पर अंग्रेजी हुकूमत कायम हो गयी है। यहाँ के लोग अपने ही घर में अधिकार विहीन हो गये हैं। पराधीनता के चलते यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी उदासीन प्रतीत हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कवि की स्वर्णिम फसल पैरों तले रौंद दी गयी है और भारत माता का मन सहनशील बनकर कुंठित हो रही है। इसमें कवि ने पराधीन भारत की कल्पना को मूर्त रूप दिया है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के ‘भारत माता’ पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारत माता के उदासीन, दुःखी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने चित्रित किया है कि गुलामी में जकड़ी भारत माता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है, क्षितिज पर गुलामी रूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर लिया है। इसके माध्यम से परतंत्रता की दुःखद स्थिति का दर्शन कराया गया है। पराधीन भारत माता उदासीन है इसका बोध कराने का पूर्ण प्रयास किया है।
प्रश्न 8. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है?
उत्तर- यह सर्वविदित है कि प्राचीन काल से ही भारत जगत गुरु कहा है। वेद वेदांग दर्शन, ज्ञान-विज्ञान की शोध स्थली भारत विश्व को ज्ञान देते रहा है। ‘गीता’ जो मानव को कर्मण्यता का पाठ पढ़ाता है जिसमें मानवीय जीवन के गूढ रहस्य छिपे हैं, यही सृजित किया गया है। लेकिन परतंत्र भारत की ऐसी दुर्दशा हुई कि यहाँ के लोग खुद दिशा विहीन हो गये, दासता में बँधकर अपने अस्मिता को खो दिये। आत्मनिर्भरता समाप्त हो या परावलम्बी। जीवन निकृष्ट, नीरस, ‘अज्ञानी, निर्धन एवं असभ्य हो गया। इसलिए कवि कहता है कि भारतमाता गीता प्रकाशिनी है फिर भी आज ज्ञान मूढ़ बनी हुई है।
प्रश्न 9. भारतमाता कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर- भारत कभी धन-धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था। किन्तु आज कितना बदला-बदला-सा है यह देश। इसी भारत की यथार्थवादी तस्वीर उतारती पंत की ‘ग्राम्या’ से संकलित यह कविता हिन्दी के श्रेष्ठ प्रगीतों में है। यहाँ कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए उसका चित्रण किया है। . भारत माता गांववासिनी है। दूर-दूर तक फैले हुए इसके श्याम खेत-खेत नहीं, धूल भरे आँचल हैं। गंगा और यमुना के जल, मिट्टी की इस उदास प्रतिमा में आँखों से बरसते हुए जल हैं।
दीनता से दुखी भारतमाता अपनी आँखें नीचे किए हुए हैं, होठों पर निःशब्द रोदन है और युगों से यहाँ छाए अंधकार से त्रस्त, यह अपने घर में ही बेगानी है। सब कुछ इसी का है, किंतु । नियमित का चक्र है कि आज इसका कुछ नहीं है, दूसरे ने अधिकार जमा लिया है।
इसके तीस करोड़ पुत्रों (कविता लिखे जाने तक भारत की आबादी इतनी ही थी) की दशा यह है कि वे प्रायः नंगे हैं, अधपेटे हैं, इनका शोषण हो रहा है ये अशिक्षित, भारत माता मस्तक झुकाए वृक्ष के नीचे खड़ी हैं।
भारत के खेतों पर सोना उगता है, पर इस देश को दूसरे अपने पैरों से रौंद रहे हैं, कुठित मन है हृदय हार रहा है, होंट थरथरा रहे हैं पर मुँह से बोली नहीं निकल रही। लगता है इस शरत चन्द्रमा को राहू ने ग्रस लिया है।
भारत माता के माथे पर चिंता की रेखाएँ हैं, आँखों में आँसू भरे हैं। मुख-मण्डल की तुलना चन्द्रमा से है किन्तु ‘गीता’ के सन्देश देनेवाली यह जननी मूढ़ बनी है। . किन्तु लगता है, आज इसकी अबतक की तपस्या सफल हो रही है, इसका तप-संयम रंग ला रहा है। अहिंसा का सुधा-पान कराकर यह लोगों का भय, भ्रम और तय दूर करनेवाली जगत जननी नये जीवन का विकास कर रही है।
भाषा की बात
प्रश्न 1. कविता के अनुच्छेद में विशेषण का संज्ञा की तरह प्रयोग हुआ है। आप उनका चयन करें एवं वाक्य बनाएँ।
ग्रामवासिनी, श्यामल, मैला, दैन्य, नत, नीरख। ।
विषण्ण, क्षुधित, चिर, मौन, चिंतित।
उत्तर-
- मवासिनी – ग्रामवासिनी, अंग्रेजों की अत्याचार से त्रस्त थे।
- श्यामल – उसका श्यामल वर्ण फीका हो गया है।
- मैला – उसका आँचल मैला हो गया।
- दैन्य – उसका दैन्य देखने में बनता है।
- नत – उसका मस्तक नत है।
- नीरव – नंदी नीरव गति से बह रही है।
- विषण्ण – उसका हृदय विषण्ण है।
- क्षुधित – क्षुधित मनुष्य कौन-सा पाप नहीं करता है।
- चिर – चीर चिर है।
- मौन – उसने मौन वर्त रखा है।
- चिंतित – उसकी चिंतित मुद्राएँ अनायास आकर्षित करती है।
प्रश्न 2. निम्नांकित के विग्रह करते हुए समास स्पष्ट करें
ग्रामवासिनी, गंगा-यमुना, शरदेन्दु, दैत्यजड़ित, तिमिरांकित, वाष्पाच्छादित, ज्ञानमूढ़, तपसंयम, जन-मन भय, भव-तम-भ्रम।
उत्तर-
- ग्रामवासिनी – ग्राम में वास करने वाली – तत्पुरुष समास
- गंगा-यमुना – गंगा और यमुना – द्वन्द
- शरदेन्दु – शरद ऋतु की चाँद – तत्पुरुष
- दैत्यजड़ित – दैत्य से जड़ित – तत्पुरुष
- तिमिराकित – मिमिर से अंकित – तत्पुरुष
- वाष्पाच्छादित – वाष्प से आच्छादित – तत्पुरुष
- ज्ञानमूढ़ – ज्ञान में मूढ़ – तत्पुरुष
- तपसंयम – तप में संयम – तत्पुरुष
- जन-मन-भय – जन, मन और भय – द्वन्द
- भव-तम भ्रम – अंत में भ्रमित संसार- तत्पुरुष
प्रश्न 3. कविता से तद्भव शब्दों का चयन करें।
उत्तर- भारतमाता, ग्रामवासिनी, खेतों, मैला, आँसू, मिट्टी, उदासिनी रोदन, थार, तीस, मूढ़, निवासिनी, चिंतित।
प्रश्न 4. कविता से क्रियापद चुनें और उनका स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें।
उत्तर-
- नत – उसका मस्तक नत है।
- फैला – प्रकाश फैल गया।
- क्रंदन – उसका क्रंदन सुनकर हृदय द्रवित हो गया।
- पिला – उसने उसे अमृत पिला दिया।
- धरती – धरती सबका संताप हरती है।
काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
1. भारतमाता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँस-जल
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी !
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तप से विषण्ण मन
वह अपने घर में
प्रवासिनी!
प्रश्न
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- भारतमाता।
कवि- सुमित्रानंदन पंत
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में हिन्दी काव्य धारा के प्रख्यात सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने भारतमाता का यथार्थ चित्र खींचा है। गुलामी के जंजीर में जकड़ी हुई भारत माता अंत:करण से कितनी व्यथित है इसी का चित्रण कवि यथार्थवादी धरातल पर कर रहे हैं। यहाँ कवि भारतमाता को ग्रामवासिनी के रूप में चित्रण किया है क्योंकि भारत की अधिकांशतः जनता गाँवों में ही . निवास करती है। साथ ही प्रकृति का अनुपम सौंदर्य ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिलते हैं।
(ग) कवि मुख्यतः मानवतावादी हैं और प्रकृति के पुजारी हैं। इसलिए यहाँ भी ग्रामीण क्षेत्र के प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि हमारी भारतमाता गाँवों में निवास करती हैं। भारत की भोली-भाली जनता गाँवों में रहती है जहाँ प्रकृति भी अनुपम सौंदर्य के साथ निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्रों के विस्तृत भू-भाग में जो फसल लहलहाते हैं वे भारत माता के श्यामले शरीर के समान सुशोभित हो रहे हैं। भारत माता का धरती रूपी विशाल आँचल धूल-धूसरित और मटमैला दिखाई पड़ रहा है। गुलामी की जंजीर में जकड़ी हुई भारत माता कराह रही है। अर्थात् भारतीय जनता के क्रन्दन के साथ ऐसा लगता है कि भारत की प्रकृति भी परतंत्रता के कारण काफी व्यथित है। मिट्टी की प्रतिमा के समान निर्जीव और चेतना रहित होकर चुपचाप शांत अवस्था में भारत माता बैठी हुई है और अंत:करण से कराहती हुई गंगा और यमुना के धारा के रूप में आँसू बहा रही है।
यह भारत माता दीनता से जकड़ी हुई है। भारत की परतंत्रता पर अपने आपको आश्रयहीन महसूस कर रही है और जैसे लगता है कि बिना पलक गिराये हुए अपनी दृष्टि को झुकाये हुए कुछ गंभीर चिंता में पड़ी हुई है। हमारी भारत माता अपने ओठों पर बहुत दिनों से क्रंदन की उदासीन भाव रखी हुई है। जैसे लगता है कि बहुत युगों से अंधकार और विषादमय वातावरण में अपने आपको जकड़ी हुई महसूस कर रही है और यह भी प्रतीत हो रहा है कि अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है। इसका अभिप्राय यह है कि अंग्रेज शासक खुद भारत में रहकर भारतवासियों को शासन में कर लिया है।
(घ) प्रस्तुत अवतरण में भारतीय परतंत्रतावाद का सजीव चित्रण किया गया है। भारत के प्राकृतिक वातावरण का मानवीकरण किया गया है जिसमें भारत माता को रोती हुई मिट्टी की प्रतिमा बनाकर दर्शाया गया है। मिट्टी की प्रतिमा खेतों में लहलहाते फसल और धूल-धूसरित आँचल के माध्यम से कवि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति असीस आस्था और विश्वास व्यक्त किया है। साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा में ग्रामीण क्षेत्रों के प्राकृतिक वातावरण की प्राथमिकता देना चाहता है।
(ङ)
- प्रस्तुत अंश में प्रकृति सौंदर्य का यथार्थवादी और अनूठा चित्र खींचा गया है।
- प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की सुकुमारता यहाँ पूर्ण लाव-लश्कर के साथ दिखाई पड़ती है।
- भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अति प्रशंसनीय है।
- अलंकार योजना की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार का जबर्दस्त प्रभाव है। इसके साथ अनुप्रास, रूपक और उपमा की छटा कविता में जान डाल दी है।
- कविता में खड़ी बोली का पूर्ण वातावरण दिखाई पड़ता है।
- शब्द योजना की दृष्टि से तत्सम एवं तद्भव शब्द अपने पूर्ण परिपक्वता में उपस्थित हुए हैं। कविता संगीतमयी हो गयी है।
2. तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
तीस कोटि सन्तान नग्न
अर्ध क्षधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरू-तल निवासिनी !
स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी !
प्रश्न
(क) कविता एवं कवि का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता.भारतमाता
कवि- सुमित्रानंदन पंत।
(ख) प्रस्तुत अवतरण में हिन्दी छायावादी विचारधारा के महानतम कवि सुमित्रानंदन पंत भारतवासियों का चित्र खींचा है। यहाँ दलित, अशिक्षित निर्धन, कुंठित, भारतवासी अतीत की गरिमा को भुलाकर वर्तमान की वैभवहीनता प्रणाली में जीवनयापन कर रहे हैं। परतंत्रता की जंजीर भारतवासियों को ऐसां जकड़ लिया है कि उनका जीवन अंधकारमय वातावरण में बिलबिलाता हुआ भटक रहा है।
(ग) कवि प्रस्तुत अंश में भारतवासियों के बारे में कहता है कि भारत के तीस करोड़ जनता अंग्रेजों के द्वारा शोषित होने के कारण वस्त्रहीन हो गये हैं। अर्थात् जिस समय भारत गुलाम था उस समय भारत की जनसंख्या तीस करोड़ थी। गरीबी की मार ऐसी थी कि उनके शरीर पर साबुन कपड़े भी नहीं थे। आधा पेट खाकर शोषित होकर, निहत्थे होकर, अज्ञानी और असभ्य होकर जीवनयापन कर रहे थे। दासता का बंधन समस्त भारतीयों को अशिक्षित और निर्धन बना दिया था। जैसे लगता था कि हमारी भारत माता ग्रामीण वृक्षों के नीचे सिर झुकाये हुए कोई गंभीर
सोच में पड़ी बैठी हुई है।
खेतों में चमकीले सोने के समान लहलहाते हुए फसल किसी दूसरे के पैरों के नीचे रौंदा जा रहा है और हमारी भारत माता धरती के समान सहनशील होकर हृदय में घुटन और क्रंदन . का वातावरण लेकर जीवन जी रही है। मन ही मन रोने के कारण भारतमाता के अधर काँप रहे
हैं। उसके मौन मुस्कुराहट भी समाप्त हो गयी है। साथ ही शरद काल में चाँदनी के समान हँसती हुई भारत माता अचानक राहु के द्वारा ग्रसित हो गई है।
(घ) प्रस्तुत अंश में गुलामी से जकड़ा भारतवासियों का बहुत ही दर्दनाक चित्र खींचा गया है। यह चित्र आज भी पूर्ण प्रासंगिक है। इसके माध्यम से कवि समस्त भारतवासियों को अतीत की गहराई में ले जाना चाहते हैं। साथ ही राहुरूपी अंग्रेजों की कट्टरता और संवेदनहीनता का दर्शन करवाते हैं।
(ङ)
- प्रस्तुत कविता हिंदी की यथार्थवादी कविता के एक नये उन्मेष की तरह है।
- यह प्राकृतिक सौंदर्य की छवि को दर्शाती है जिससे यह मनोरम कही जा सकती है।
- अलंकार योजना की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार से अलंकृत है।
- अनुप्रास, रूपक और उपमा की छटा कविता में जान डाल दी है।
- कविता संगीतमयी है।
3. चिंतित भृकटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
सफल आज उसका तप संयम,
पिता अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन-विकासिनी!
प्रश्न
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- भारतमाता।
कवि सुमित्रानंदन पंत।
(ख) प्रस्तुत अवतरण में हिन्दी छायावादी के महान प्रवर्तक सुमित्रानंदन पंत परतंत्रतावाद , में भारतवासियों की स्थिति कितनी कठोरतम थी एवं कितना जटिल जीवन था, इसी का वर्णन यथार्थ के धरातल पर करते हैं।
(ग) कवि भारत माता का नाम लेकर सम्पूर्ण भारतीय भाषावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद एवं राजनीतिवाद को एकता के सूत्र में पिरोना चाहते हैं। तब तो भारत की तीस करोड़ जनता के मनोभिलाषा को दर्शाते हैं। हमारी भारतमाता की भृकुटी चिंता से ग्रसित है। सम्पूर्ण धरातल, परतंत्रारूपी अंधकार से घिरा हुआ है। सभी भारतवासियों के नेत्र झुके हुए हैं। भारतवासियों का हृदय-रूपी आकाश आँसूरूपी वाष्प से ढंक गया है।
चंद्रमा के समान सुन्दर और प्रसन्न मुख उदासीन होकर कोई घोर चिंता के सागर में डूब गया है जो भारतमाता अज्ञानता को समाप्त करनेवाली गीता उत्पन्न की है वही आज अज्ञानता ‘के वातावरण में भटक रही है।
इतने कठोरतम जीवन के बाद भी हमारी भारतमाता का तप और संयम में कमी नहीं आयी है। अपने समस्त भारतवासियों को अहिंसा का दूध पिलाकर उनके मन के भय अज्ञानता, प्रेमहीनता एवं भ्रमशीलता को दूर करती हुई सम्पूर्ण जगत की जननी होकर जीवन को विकास करनेवाली है।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में पराधीन भारत की दीन हालत की वास्तविक झलक मिलती है। इसमें पराधीनता से चिंतित भारतमाता की उदासीन चेहरा को जीवंत रूप में चिंत्रित किया गया है। नम आँखें, अश्रुरूपी वाष्प, गुलामी की अंधकाररूपी छाया के माध्यम से भारत माता दुखी भाव को जीवंत रूप में दर्शाया गया है। पद्यांश में भारतमाता विशाल छवि की कल्पना करते हुए जग जननी की संज्ञा देकर इसकी महत्ता को उजागर किया है। इस काव्यांश के माध्यम से ज्ञान, अहिंसा, तप, संयम को धारण करनेवाली भारत माता जीवन विकासिनी है ऐसी चेतना विश्व में जगाने का
प्रयास किया गया है।
(ङ)
- यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य का प्रकटीकरण है।
- भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अति प्रशंसनीय है।
- शब्द योजना की दृष्टि से तत्सम एवं तद्भव शब्द अपने पूर्ण परिपक्वता में उपस्थित हए हैं।
- अलंकार योजना की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार है।
- इसमें अनुप्रास, रूपक और उपमा की छटा निहित है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न सही विकल्प चुनें-
प्रश्न 1. ‘भारत माता’ किस कवि की रचना है ? या ‘भारत माता’ के रचयिता कौन हैं?
(क) रामधारी सिंह दिनकर
(ख) प्रेमधन
(ग) सुमित्रानन्दन पंत
(घ) कुंवर नारायण
उत्तर- (ग) सुमित्रानन्दन पंत
प्रश्न 2. सुमित्रानन्दन पंत कैसे कवि हैं ?
(क) हालावादी
(ख) छायावादी
(ग) रीतिवादी
(घ) क्षणवादी
उत्तर- (क) हालावादी
प्रश्न 3. पंतजी की भारत माता कहाँ की निवासिनी है ?
(क) ग्रामवासिनी
(ख) नगरवासिनी
(ग) शहरवासिनी
(घ) पर्वतवासिनी
उत्तर- (क) ग्रामवासिनी
प्रश्न 4. भारत माता का आँचल कैसा है ?
(क) नीला
(ख) लाल
(ग) गीला
(घ) धूल भरा
उत्तर- (घ) धूल भरा
प्रश्न 5. भारत माता’ कविता कवि के किस काव्य-ग्रंथ से संकलित है?…
(क) वीणा
(ख) ग्रंथि
(ग) ग्राम्या
(घ) उच्छवास
उत्तर- (ग) ग्राम्या
प्रश्न 6. पंतज़ी का मूल नाम क्या था?
(क) गोसाईं दत्त
(ख) सुमित्रानंदन
(ग) नित्यानंद पंत
(घ) परमेश्वर दत्त पंत
उत्तर- (घ) परमेश्वर दत्त पंत
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1. पंतजी को उनकी साहित्य-सेवा के लिए भारत सरकार ने ………….. से अलंकृत किया।
उत्तर- पद्मभूषण
प्रश्न 2. ………. पर पंतजी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
उत्तर- चिदंबरा
प्रश्न 3. पंतजी मूलत: ……….. और सौंदर्य के कवि हैं।
उत्तर- प्रकृति
प्रश्न 4. कवि के अनुसार गंगा-यमुना के जल …….. के आँसू हैं।
उत्तर- भारतमाता
प्रश्न 5. पंतजी का जन्म अल्मोड़ा जिला के ……… में हुआ था।
उत्तर- कौसानी
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पंतजी ने अपनी कविताओं में प्रकृति के किस पक्ष का उद्घाटन किया है ?
उत्तर- पंतजी ने अपनी कविताओं में प्रकृति के सुकोमल पक्ष का उद्घाटन किया है।
प्रश्न 2. ‘भारत माता’ कविता पर किस विचारधारा का प्रभाव है ?
उत्तर-भारत माता’ कविता पर प्रगतिवाद का प्रभाव है।
प्रश्न 3. कवि पंत के ‘भारत माता’ कविता में किस काल के भारत का चित्रण है ?
उत्तर- कवि पंत के ‘भारत माता’ कविता में भारत के पराधीन काल का चित्रण है।
प्रश्न 4. ‘भारत माता’ कविता में भारत के किस रूप का उल्लेख है ?
उत्तर- ‘भारत माता’ कविता में भारत के दीन-हीन का उल्लेख है।
प्रश्न 5. ‘भारत माता’ कविता में कैसी शब्दावली का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर- ‘भारत माता’ कविता में तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
व्याख्या खण्ड
प्रश्न 1. “भारत माता ग्रामवासनी
खेतों में फैला है श्यामल,
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू जल
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी !”
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘भारत माता’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इस कविता के रचनाकार महाकवि पंतजी है। कवि का कहना है कि भारत माता गाँवों में बसती है। उसके रूप की छटा हरियाली के रूप में खेतों में पसरी है। माँ का आँचल धूल से भरा हुआ, मटमैला दिखाई पड़ता है। गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों की तरह आँखों में जल है। भारत माता मिट्टी की सही प्रतिमा है। भारत माता का व्यक्तित्व हर दृष्टि से संपन्न है फिर भी मुखमंडल उदास क्यों हैं ? यह कवि स्वयं से और लोक-जन से प्रश्न पूछता है। इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि भारत साधन-संपन्न देश होकर भी अभाव, बेकारी, वैमनस्य के बीच क्यों जी रहा है। इन्हीं कारणों से उसने भारत-भू को लोकदेवी, भारतमाता, भारतदेवी के रूप में , चित्रित कर यथार्थ स्वरूप का वर्णन किया है। इसमें भारतीय जन-जीवन, उसकी वर्तमान स्थिति का स्पष्ट रेखांकन है, सत्य चित्रण है।
प्रश्न 2. “दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी!
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के भारत माता शीर्षक कविता से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों में कवि ने भारत माता की दैन्य स्थिति का सटीक चित्रण प्रस्तुत किया है।
कवि भारत माँ की पीड़ा, आकुलता, अभावग्रस्तता को देखकर व्यथित हो उठा है। वह कहता है कि भारत माता दीनता से पीड़ित हैं। आँखें अपलक रूप में नीचे की ओर झुकी हुई हैं। होठों पर बहुत दिनों से मौन दिखायी पड़ता है। युग-युग के अंधकार सदृश्य टूटे मन के साथ निज घर में वास करते हुए भी प्रवासिनी के रूप में यानी अजनबी के रूप में रह रही हैं।
इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारत माता का मानवीकरण किया है और सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है। भारतीय जन की पीड़ा, दीनता, रूदन, नैराश्य जीवन, टूट मन, पुराने कष्टप्रद घावों को देखकर कवि का संवेदनशील हृदय पीड़ित हो उठता है और भारत माता को भारतीय जन की पीड़ाओं, चिन्ताओं, कष्टों के रूप में चित्रित कर दिखाना चाहता है। कविता की इन पंक्तियों में भारतीय जन की पीड़ा, चिंता, भारत माता की चिंता है, पीड़ा है, अभावग्रस्तता है।
प्रश्न 3. तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक,
तरु-तल निवासिनी!
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के भारत माता काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि कल्पना करता है कि तीस करोड़ पुत्रों की स्थिति आज असहनीय है। ये सारी संतानें नंगे तन लेकर रास्ते में भटक रही हैं। भूख भी आधी पूरी हुई है, अर्थात् आधा पेट भोजन ही उपलब्ध है। शोषित रूप में बिना किसी हथियार के यानी निहत्थे रूप में जी रहे हैं। भारतीय जनता कैसी है ? …मूढ़ है, असभ्य है, अशिक्षित है, निर्धन है, उसके मस्तक झुके हुए हैं अर्थात् उसमें प्रतिरोध का साहस नहीं रह गया है। पेड़ों के तल के नीचे निवास करनेवाली भारतीय जनता यानी भारत माता की आज की दुर्दशा और विवशता देखी नहीं जाती।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि भारत के लोग घोर गरीबी, फटेहाली, बेकारी और अभाव में आज भी जी रहे हैं. और कल भी जीने के लिए विवश हैं।
इन पंक्तियों में कवि ने भारत माता का चित्रण करते हुए भारतीय जनता को पुत्र रूप में चित्रित किया है और उनकी विशेषताओं, अभावों, कष्टों, दुःखों का सटीक वर्णन किया है। .
प्रश्न 4. “स्वर्ण शस्य पद-तल लुंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु-ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी!”
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के भारत माता काव्य-पाठ से संकलित हैं। इन पक्तियों में कवि ने भारत माता के रूप-स्वरूप की विशेषताओं को चित्रित किया है। कवि कहता है कि स्वर्ण भंडार से युक्त, भारत की धरती है लेकिन पैरों तले रौंदकर घायल कर दिया गया है ऐसा क्यों ? धरती की तरह सहन शक्ति से युक्त मन है, फिर भी कुंठित क्यों है ? करुण क्रंदन से होंठ काँप रहे हैं। होंठों यानी अधरों पर जहाँ मौन हँसी रहनी चाहिए उसे राहु ने ऐसा ग्रस लिया है जैसे चन्द्रग्रहण लगता है।
शरत के चन्द्रमा की हँसी की तरह यानी चांदनी रात की छटा से युक्त भारत माता का व्यक्तित्व होना चाहिए। वहाँ आज उदासी है, रुदन है, कुंठा है, पीड़ा है, कंपन है, रौंदा हुआ मन है। . इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीय जन के अंतर के संत्रास को भारतमाता की पीड़ा, संत्रास, कुंठा के रूप में चित्रित किया है। भारत माता की विवशता, दीनता, दलित, टूटे मन के भाव को दिखाया गया है।
प्रश्न 5. चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाण्याच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के भारत माता काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारत माता के मुखमंडल का कष्टप्रद चित्रण प्रस्तुत किया है।
कवि कहता है कि भारत माता की भौंहें ऐसी लगती हैं मानो अंधकार से घिरा हुआ क्षितिज हो। आँखें झुकी हुई हैं जैसे वाष्प से ढंका हुआ नभ दिखता है। चंद्रमा से उपमा दिये जानेवाले मुख की शोभा आज विलुप्त है। पूरे विश्व के मूर्ख जनों को गीता का ज्ञान देनेवाली भारत माता आज स्वयं अंधकार में यानी घोर ज्ञानाभाव, अर्थाभाव के बीच दैन्य जीवन जी रही है। माँ का मुख-मंडल ज्ञान-ज्योति से, प्रभावान रहना चाहिए वह मलिन है पूरा व्यक्तित्व ही दयनीय दशा का बोध करा रहा है। इन पक्तियों के द्वारा कवि भारत की वर्तमान काल की विवशताओं, अभावों, अंधकार में जीने की विवशताओं, कुंठाओं से ग्रसित मन का चित्रण कर हमें भारत माता के मानवीकरण रूप द्वारा भारतीय समाज का सच्चा प्रतिबिंब उपस्थित कर यथार्थ-बोध करा रहा है।
प्रश्न 6.
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्नन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तप-भ्रम,
जग-जननी
जीवन विकासिनी !
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक भारत माता काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि भारतीय सांस्कृतिक गौरव गाथा का चित्रण प्रस्तुत करते हुए भारत माता के विराट उज्ज्वल व्यक्तित्व की व्याख्या कर रहा है।
कवि कहता है कि आज हम सबका जीवन सफल है क्योंकि भारत माता तप, संयम, सत्य और अहिंसा रूपी अपने स्तन के सुधा का पान कराकर जनमन के भय का हरण कर रही है। भय और अंधकार से मुक्ति दिला रही है।
इन पंक्तियों में गांधी और बुद्ध के जीवन-दर्शन और करुणा के उपदेश छिपे हैं। भारत माता के इन सपूतों ने पूरे विश्व को अंधकार से आलोक की ओर चलने का मार्ग दर्शन किया। कवि अपनी काव्य पंक्तियों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक गरिमा का गुणगान करता है और विश्व को याद दिलाता है कि भारत माता के आँचल से, भारत माँ की गोद से ही प्रभा-पुंज का उद्भव हुआ जिससे सारा विश्व आलोकित हुआ। सारा विश्व विश्वबंधुत्व, समता, शांति, अहिंसा, सत्य की ओर अग्रसर हुआ।
भारत माता जगत्-माता हैं। जीवन को विकास मार्ग पर ले जानेवाली माता है। वह सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाकर सुयोग्य पुत्र बनानेवाली माता हैं।
शब्दार्थ
- श्यामल : साँवला
- दैन्य : दीनता, अभाव, गरीबी
- जड़ित : स्थिर, चेतनाहीन
- नत : झुका हुआ
- चितवन : दृष्टि
- चिर : पुराना, स्थायी
- नीरव : नि:शब्द, ध्वनिहीन
- तम : अधकार
- विषण्ण : (विषाद से निर्मित विशेषण) विषादमय
- प्रवासिनी : विदेशिनी, बेगानी
- क्षुधित : भूखा
- निरस्त्रजन : निहत्थे लोग
- शस्य : फसल
- तरु-तल : वृक्ष के नीचे
- पर-पद-तल : दूसरों के पाँवों के नीचे
- लुठित : रौंदा जाता हुआ
- सहिष्णु : सहनशील
- कुठित : रुका हुआ, रुद्ध, गतिहीन
- क्रंदन : रुदन, रोना
- अधरं : होठ
- स्मित : मुस्कान
- शरदेन्दु : शरद ऋतु का चन्द्रमा
- भृकुटि : भौंह
- तिमिरांकित : अंधकार से घिरा हुआ
- नमित : झुका हुआ
- वाष्पाच्छादित : भाप से ढंका हुआ
- आनन-श्री : मुख की शोभा
- शशि-उपमित : चंद्रमा से उपमा दी जानेवाली
- स्तन्य : स्तन का दूध