bihar board class 10 hindi chapter 5 -नागरी लिपि

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नागरी लिपि लेखक परिचय

गुणाकर मुलेका जन्म 1935 ई० में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई । शिक्षा की भाषा मराठी थी। उन्होंने मिडिल स्तर तक मराठी पढ़ाई भी । फिर वे वर्धा चले गये और वहाँ उन्होंने दो वर्षों तक नौकरी की, साथ ही अंग्रेजी व हिंदी का अध्ययन किया । फिर इलाहाबाद आकर उन्होंने गणित विषय में मैट्रिक से लेकर एम० ए० तक की पढ़ाई की । सन् 2009 में मुले जी का निधन हो गया ।

गुणाकर मुले के अध्ययन एवं कार्य का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक है । उन्होंने गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरालिपिशास्त्र और प्राचीन भारत का इतिहास व संस्कृति जैसे विषयों पर खूब लिखा है। पिछले पच्चीस वर्षों में मुख्यतः इन्हीं विषयों से संबंधि तं उनके 2500 से अधिक लेखों तथा तीस पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं – ‘अक्षरों की कहानी’, ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’, ‘प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘मैंडलीफ’, ‘महान वैज्ञानिक’, ‘सौर मंडल’, ‘सूर्य’; ‘नक्षत्र-लोक’, ‘भारतीय लिपियों की कहानी’, ‘अंतरिक्ष-यात्रा’, ‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘भारतीय विज्ञान की कहानी आदि । गुणाकर मुले की एक पुस्तक है ‘अक्षर कथा’ । इस पुस्तक में उन्होंने संसार की प्रायः सभी प्रमुख पुरालिपियों की विस्तृत जानकारी दी है।

प्रस्तुत निबंध गुणाकर मुले की पुस्तक भारतीय लिपियों की कहानी’ से लिया गया है । इसमें हिंदी की अपनी लिपि नागरी या देवनामरी के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गयी है। यहाँ हमारी लिपि की प्राचीनता, व्यापकता और शाखा विस्तार का प्रवाहपूर्ण शैली में प्रामाणिक आख्यान प्रस्तुत किया गया है। तकनीकी बारीकियों और विवरणों से बचते हुए लेखक ने निबंध को बोझिल नहीं होने दिया है तथा सादगी और सहजता के साथ जरूरी ऐतिहासिक जानकारियाँ देते हुए लिपि के बारे में हमारे भीतर आगे की जिज्ञासाएँ जगाने की कोशिश की है।

नागरी लिपि पाठ का सारांश

जिस लिपि में यह लेख छपा है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है।

हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। हमारे, पड़ोसी देश नेपाल की नेपाली व नेवारी भाषाएँ भी इसी लिपि में लिखी जाती हैं। मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है। देवनागरी लिपि के बारे में एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि संसार में जहाँ भी संस्कृत-प्राकृत की पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, वे प्रायः देवनागरी लिपि में ही छपती हैं।

गुजराती लिपि देवनागरी से अधिक भिन्न नहीं है। बंगला लिपि प्राचीन नागरी लिपि की पुत्री नहीं, तो बहन अवश्य है। हाँ, दक्षिण भारत की लिपियाँ वर्तमान नागरी से काफी भिन्न दिखाई देती हैं। लेकिन यह तथ्य हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि आज कुछ भिन्न-सी दिखाई देनेवाली – दक्षिण भारत की ये लिपियाँ (तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़) भी नागरी की तरह प्राचीन ब्राह्मी से ही विकसित हुई हैं।

दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए नागरी लिपि का व्यवहार होता था। दक्षिण भारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि : के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नदिनागरी लिपि में हैं।

बारहवीं सदी में केरल के शासकों ने सिक्कों पर ‘वीरकेरलस्य जैसे शब्द नागरी लिपि में अंकित हैं। श्रीलंका के पराक्रमबाहु, विजयबाहु (बारहवीं सदी) आदि शासकों के सिक्कों पर भी नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं।

उत्तर भारत के महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह, अकबर आदि शासकों ने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए थे। उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान, कन्नौज के गाहड़वाल, काठियावाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, जेजाकभुक्ति (बुंदेलखण्ड) के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचूरि शासकों के लेख नागरी लिपि में ही हैं। उत्तर भारत की इस नागरी लिपि को हम देवनागरी के नाम से जानते हैं।

नागरी नाम की उत्पत्ति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। एक मत के अनुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने पहले-पहल इस लिपि का इस्तेमाल किया, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा।

‘पादताडितंकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर या नागरी’ शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना हो। चंद्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा। लेकिन यह सिर्फ एक मत हुआ।

कर्णाटक प्रदेश का श्रवणबेलगोल स्थान जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। इस स्थान से विविध भाषाओं और लिपियों के अनेक लेख मिले हैं। एक अन्य नागरी लेख में लिखा है चावुण्डराजे करविय ले। ये लेख दक्षिणी शैली की नागरी लिपि में हैं।

देवगिरि के यादव राजाओं के नागरी लिपि में बहुत सारे लेख मिलते हैं। कल्याण के पश्चिमी चालुक्य नरेशों के लेख भी नागरी लिपि में हैं। उड़ीसा (कलिंग प्रदेश) में ब्राह्मी को एक विशेष शैली, कलिंग लिपि का आस्तित्व था, परंतु गंगवंश के कुछ शासकों के लेख नागरी लिपि में भी मिलते हैं।

उत्तर भारत में पहले-पहल गुर्जर-प्रतीहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार शासक हुए। मिहिर भोज 1840-81 ई की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

प्रश्न 1. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर- करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं, इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है।

प्रश्न 2. देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ?
उत्तर- देवनागरी लिपि में नेपाल की नेपाली (खसकुरा) व नेवारी भाषाएँ मराठी भाषा की लिपि तथा संस्कृत एवं हिन्दी की लिपि देवनागरी है।

प्रश्न 3. लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।
उत्तर- लेखक ने गुजराती और बंगला लिपि से देवनागरी का संबंध बताया है।

प्रश्न 4. नंदी नागरी किसे कहते हैं ? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है ?
उत्तर- विद्वानों का यह भी मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगर (आधुनिक नांदेड़) की लिपि होने के कारण इसका नाम नदिनागरी पड़ा।

दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए नागरी लिपि का व्यवहार होता था। दरअसल, दक्षिणभारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में हैं। पहले-पहल । विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को ही नंदिनागरी नाम दिया गया था।

प्रश्न 5. नागरी लिपि में आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें।
उत्तर- नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। राजराजा व राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से मिलने लग जाते हैं और उत्तर भारत में नौवीं सदी से।

प्रश्न 6. ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?
उत्तर- मुप्त काल की ब्राह्मी लिपी तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये शिरोरेखाएँ उतनी ही लंबी रहती हैं जितनी कि अक्षरों की चौड़ाई होती है।

प्रश्न 7. उत्तर भारत के किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं?
उत्तर- उत्तर भारत के इस्लामी शासन की नींव डालनेवाली महमूद गजनवी के लाहौर के टकसाल में ढाले गए चाँदी के सिक्कों पर भी हम नागरी लिपि के शब्द देखते हैं। मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह, अकबर आदि शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए थे।

प्रश्न 8. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं ? लेखक इस संबंध में क्या बताता है ?
उत्तर- पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर’ या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो। चंद्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, इसलिए इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा।

प्रश्न 9. नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है ? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है ?
उत्तर-
इतना ध्रुवसत्य है कि यह नागरी शब्द किसी नगर अर्थात् किसी बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादतादितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र अर्थात् पटना को नगर नाम से पुकारते थे। अतः हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को नागर शैली कहते हैं। अतः नागर या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। विद्वानों के अनुसार उत्तर भारत का यह बड़ा नगर निश्चित रूप से पटना ही होगा। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम देव था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को देवनगर भी कहा जाता था देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया था।

प्रश्न 10. नागरी लिपि कब तक सार्वदेशिक लिपि थी?
उत्तर- ईसा की 8वीं-11वीं सदियों में हम नागरी लिपि को पूरे देश में व्याप्त देखते हैं। उस समय यह एक सार्वदेशिक लिपि थी।

प्रश्न 11. नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है ? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है ?
उत्तर-
नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ भी जन्म लेती हैं। आठवीं-नौवीं सदी से आरंभिक हिंदी साहित्य मिलने लग जाता है। इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ, मराठी, बंगला आदि जन्म ले रही थीं।

प्रश्न 12. गुर्जर प्रतीहार कौन थे?
उत्तर-
अनेक विद्वानों का मत है कि ये गुर्जर-प्रतीहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी की पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन खड़ा किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार शासक हुए। मिहिर भोज (1840-81) ई. की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

प्रश्न 13. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
निबंध के आधार पर कालक्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण इस प्रकार मिलते हैं – ग्यारहवीं सदी में राजेन्द्र जैसे प्रतापी चेर राजाओं के सिक्कों पर नागर अक्षर देखने को मिलते हैं। बारहवीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में अकित हैं। दक्षिण से प्राप्त वरगुण का पलयम ताम्रपत्र भी नागरी लिपि में नौवीं सदी की है। एक हजार ई. के आसपास मालवा नगर में नागर लिपि का इस्तेमाल होता था।

विक्रमादित्य के समय पटना में देवनागरी का प्रयोग मिलता है। ईसा की आठवीं से ग्यारहवीं सदियों में नागरी लिपि पूरे भारत में व्याप्त थी। आठवीं सदी में दोहाकोश की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है, वह नागरी लिपि में है। पाँच सौ चौअन ई० में राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का दानपत्र नागरी लिपि में प्राप्त हुआ है। 850 ई. में जैन गणितज्ञ महावीराचार्य के गणित सार संग्रह की रचना मिलती है जो नागरी लिपि में है।

भाषा की बात

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों से संज्ञा बनाएँ
उत्तर-
स्थिर = स्थिति
अतिरिक्त = अतिरिक्तता
स्मरणीय = स्मरण
दक्षिणी = दक्षिण
आसान = आसानी
पराक्रमी = पराक्रम
युगीन = युग

प्रश्न 2. निम्नलिखित पदों के समास विग्रह करें
उत्तर-

तमिल-मलयालम = तमिल और मलयालम द्वन्द्व
रामसीय = राम और सीता द्वन्द्व
विद्यानुराग = विद्या को अनुराग (तत्पुरूष)
शिरोरेखा = शिर पर रेखा (तत्पुरूष)
हस्तलिपि = हस्त की लिपि (तत्पुरूष)
दोहाकोश = दोहा का कोश (तत्पुरूष)
पहले-पहल = पहला पहला (अव्ययीभाव)

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें –
उत्तर-

मंत = कथन, वचन।
सार्वदेशिक = पूरे देश की, संपूर्ण राष्ट्र।
अनुकरण = अनुगमन, नकल।
व्यवहार = आचार, संबंध।
शासक = राजा, बादशाह।

प्रश्न 4. निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) प्रत्न – पुराना
प्रयत्न प्रयास
(ख) लिपि – लिखावट
लिप्ति – ढका हुआ
(ग) नागरी – एक लिपि
नागरिक – जनता
(घ) पट – वस्त्र
पट्ट – तख्ती (पट्टिका)

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 हिंदी तथा इसकी विविध बोलियाँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं हमारे पड़ोसी देश नेपाल की नेपाली (खसकुरा) व नेवारी भाषाएँ भी इसी लिपि में लिखी जाती हैं। मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है। मराठी में सिर्फ एक अतिरिक्त अक्षर है। हमने देखा है कि प्राचीन काल में संस्कृत व प्राकृत भाषाओं में यह ध्वनि थी और इसके लिए अनेक अभिलेखों में अक्षर मिलता है।
प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हिंदी किस लिपि में लिखी जाती है ?
(ग) नेपाल में कौन-सी भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं?
(घ) मराठी भाषा की लिपि क्या है ?
(ङ) प्राचीन काल में किन भाषाओं में देवनागरी की ध्वनि थी?
उत्तर-
(क)पाठ का नाम-नागरा लिापा
लेखक का नाम गुणाकर मुले।
(ख) हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
(ग) नेपाल में नेपाली (खुसकुरा) एवं नेपाली भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
(घ) मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है।
(ङ) प्राचीन काल में संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं में देवनागरी की ध्वनि थी।

प्रश्न 2 ईसा की चौदहवीं-पंद्रहवीं सदी के विजयनगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को नंदिनागरी कहा है। विजयनगर के राजाओं के लेख कन्नड़-तेलगु और नागरी लिपि में मिलते हैं। जानकारी मिलती है कि विजयनगर के राजाओं के शासनकाल में ही पहले-पहल वेदों को लिपिबद्ध किया गया था। यह वैदिक साहित्य निश्चय ही नागरी लिपि में लिखा गया होगा। विद्वानों का यह भी मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगर (आधुनिक नांदेड़) की लिपि होने के कारण इसका नाम नदिनागरी पड़ा।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) विजयनगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को क्या कहा है?
(ग) विजयनगर के लेख किस लिपि में मिलते हैं ?
(घ) किसके शासन काल में पहले-पहल वेदों को लिपिबद्ध किया गया?
(ङ) नागरी लिपि का नंदिनागरी नामू क्यों पड़ा?

उत्तर-
(क) पाठ का नाम नागरी लिपि
लेखक का नाम गुणाकर मुले।
(ख)विजय नगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को नदिनागरी कहा है।
(ग) विजय नगर के लेख नागरी लिपि में मिलते हैं।
(घ) विजय नगर के राजाओं के शासनकाल में पहले-पहल वेदों को लिपिबद्ध किया गया था।
(ङ) विद्वानों का मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगरे (आधुनिक नांदेड) की लिपि होने के कारण इसका नाम नंदिनागरी पड़ा।

प्रश्न 3 . अनेक विद्वानों का मत है कि दक्षिण भात में नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख राष्ट्रकूट राजा तिदुर्ग का सामागंड दानपत्र (754 ई०) है। दंतिदुर्ग ने ही राष्ट्रकूट शासन की नींव डाली थी। ये राष्ट्रकूट शासक मूलतः कर्णाटक के रहनेवाले थे और इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी; परंतु ये खानदेश-विदर्भ में बस गए थे। दंतिदुर्ग के बाद उसका चाचा कृष्ण (प्रथम) राष्ट्रकूटों की गद्दी पर बैठा। इसी कृष्ण के शासनकाल में एलोरा (प्राचीन एलापुर, वेरूल) में अनुपम कैलाश मंदिर पहाड़ को काटकर बनाया गया था।

कृष्ण के कुछ लेख भी मिले हैं। नौवीं सदी में अमोघवर्ष एक प्रख्यात राष्ट्रकूट राजा हुआ। इसी अमोघवर्ष ने राष्ट्रकूट की नई राजधानी मान्यखेट (मालखेड) की नींव डाली। अमोघवर्ष के शासनकाल में ही जैन गणितज्ञ महावीराचार्य (850 ई.) ने ‘गणितसार-संग्रह’ की रचना की थी।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) अनेक विद्वान नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख किसे मानते हैं और वह किस काल का है ?
(ग) राष्ट्रकूट शासन की नींव किसने डाली थी?
(घ) राष्ट्रकूट शासक मूलत: कहाँ के रहनेवाले थे ?
(ङ) राष्ट्रकूट शासकों की मातृभाषा क्या थी ?
(च) दंतिदुर्ग के बाद राष्ट्रकूटों की गद्दी पर कौन बैठा?
(छ) किसके शासनकाल में एलोरा में कैलाश मन्दिर बनाया गया ?
(ज) जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने किसके शासन काल में और कौन-से ग्रंथ की रचना की?

उत्तर-
(क) पाठ का नाम नागरी लिपि
लेखक का नाम गुणाकर मुले।
(ख) अनेक विद्वान का मत है कि दक्षिण भारत में नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का सामागंड दानपत्र 745 ई. है।
(ग) राष्ट्रकूट शासन की नींव दंतिदुर्ग ने डाली थी।
(घ) राष्ट्रकूट शासक मूलतः कर्णाटक के रहनेवाले थे।
(ङ) राष्ट्रकूट शासकों की मातृभाषा कन्नड़ थी।
(च) दंतिदुर्ग के बाद राष्ट्रकूटों की-गद्दी पर उसका चाचा कृष्ण (प्रथम) बैठा।
(छ) कृष्ण (प्रथम) के शासनकाल में एलोरा में अनुपम कैलाश मंदिर पहाड़ को काटकर बनाया गया था।
(ज) जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने अमोघवर्ष के शासन काल में ‘गणितसार-संग्रह’ नामक ग्रंथ की रचना की?

प्रश्न 4. महमूद गजनवी के बाद के मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए हैं। बादशाह अकबर ने ऐसा सिक्का चलाया था जिस पर राम-सीता की आकृति है और नागरी लिपि में ‘रामसीय’ शब्द अंकित है।

उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान, कन्नौज के गाहड़वाल, काठियाबाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, जेजाकभुक्ति (बुंदेलखण्ड) के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचुरि शासकों के लेख नागरी लिपि में ही हैं। उत्तर भारत की इस नागरी लिपि को हम देवनागरी के नाम से जानते हैं।

प्रश्न
(क) महमूद गजनवी के बाद किन-किन शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाएं थे ?
(ख) सम्राट अकबर ने अपने सिक्के पर कौन-सी आकृति अंकित की थी और उस पर नागरी लिपि में कौन-सा शब्द अंकित है
(ग) उत्तर भारत में किन-किन शासकों के लेख नागरी लिपि में हैं ?
(घ) उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम किस लिपि के नाम से जानते हैं?

उत्तर-
(क) महमूद गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी शब्द अंकित करवाये थे।
(ख) सम्राट अकबर ने अपने सिक्कों पर राम-सीता की आकृति अंकित की थी और उस पर नागरी लिपि में ‘रामसीय’ शब्द अंकित है।
(ग) उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान कन्नौज के गाहड़वाल, काठियावाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, बुंदेलखंड के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचुरि शासकों के लेख नागरी लिपि में है।
(घ) उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम देवनागरी लिपि के नाम से जानते हैं।

प्रश्न 5 गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के शिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये शिरोरेखाएं उतनी ही लम्बी रहती हैं जितनी कि अक्षरों की – चौड़ाई होती हैं। हाँ, कुछ लेखों के अक्षरों के शिरों पर अब भी कहीं-कहीं तिकोन दिखाई देते हैं। दूसरी स्पष्ट विशेषता यह है कि प्राचीन नागरी के अक्षर आधुनिक नागरी से मिलते-जुलते हैं और इन्हें आसानी से थोड़े-से अभ्यास से पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) ब्राह्मी लिपि और सिद्धम लिपि की शिरसंस्थाएँ कै
(ग) नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?
(घ) प्राचीन नागरी लिपि और आधुनिक नागरी लिपि में क्या साम्य है?

उत्तर-
(क) पाठ- नागरी लिपिालेखक- गुणाकर मुले।
(ख) गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी, आडी लकीरें या ठोस तिकोन हैं। : (ग) नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें होती हैं और ये उतनी ही रहती हैं जितनी कि अक्षरों की चौड़ाई।
(घ) प्राचीन नागरी लिपि और आधुनिक नागरी लिपि के अक्षर बहुत-कुछ मिलते हैं जिन्हें थोड़े-से अभ्यास से पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न ६. इतना निश्चित है कि यह नागरी शब्द किसी नगर अर्थात् बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादताडितकम्’ नामक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर’ या ‘नागरी’ शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है।

असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो। चन्द्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’, का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कह जाता होगा। देवनागरी’ की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा। लेकिन यह सिर्फ एक मत हुआ। हम सप्रमाण नहीं बता सकते कि यह देवनागरी नाम कैसे अस्तित्व में आया।

प्रश्न
(क) पाठ और लेख का नामोल्लेख करें।
(ख) नागरी शब्द किससे संबंधित है ?
(ग) ‘देवनागरी’ नाम के संबंध में लेखक का क्या अनुमान है ?

उत्तर
(क) पाठ- नागरी लिपिालेखक- गुणाकर मुले।
(ख) नागरी शब्द किसी नगर से संबंधित है।
(ग) लेखक का अनुमान है कि यह ‘नगर’ पटना ही होगा। उसके अनुमान का आधार यह है कि चन्द्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था। इसलिए गुप्तों की राजधानी को ‘देवनगर’ कहा जाता होगा। ‘देवनगर’ की लिपि होने के कारण इसका नाम ‘देवनागरी’ पड़ा। किन्तु लेखक का यह सुनिश्चित मत नहीं है।

प्रश्न 7. नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ भी जन्म लेती हैं। आठवीं-नौवीं सदी से आरंभिक हिन्दी का साहित्य मिलने लग जाता है। हिन्दी के आदिकवि सरहपाद (आठवीं) के ‘दोहाकोश’ की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है वह दसवीं-ग्यारहवीं सदी की लिपि में लिखी गई है। नेपाल से और भारत के जैन-भंडारों से भी इस काल की बहुत सारी हस्तलिपियाँ मिली हैं। इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ-मराठी, बंगला आदि जन्म ले रही थीं। इस समय से इन भाषाओं के लेख मिलने लगते हैं।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) हिन्दी का आरम्भिक साहित्य कब से मिलता है?
(ग) हिन्दी के आदिकवि कौन थे और उनकी कौन-सी पुस्तक किस लिपि में उपलब्ध है?
(घ) आधुनिक भारतीय भाषाओं में किनका जन्म इस काल में हुआ?

उत्तर-
(क) पाठ-नागरी लिपिा लेखक-गुणाकर मुले।
(ख) हिन्दी का आरम्भिक साहित्य आठवीं-नौवीं सदी से मिलता है।
(ग) हिन्दी के आदिकवि आठवीं सदी के सरहपाद थे। उनकी पुस्तक ‘दोहाकोश’ है जो दसवीं-ग्यारहवीं सदी की लिपि में लिखी गई है।
(घ) आधुनिक भारतीय भाषाओं में मराठी, बंगला आदि का जन्म भी आठवीं-नौवीं सदी में होने लगा था।

प्रश्न 8 ग्यारहवीं सदी से नागरी लिपि में प्राचीन मराठी भाषा के लेख मिलने लग जाते हैं। अक्ष (कुलाबां जिला) से शिलाहार शासक केशिदेव (प्रथम) का एक शिलालेख (1012 ई०) मिला है, जो संस्कृत, मराठी भाषाओं में है और इसकी लिपि नागरी है। परन्तु दिवे आगर (रत्नागिरि जिला) ताम्रपट पूर्णतः मराठी में है। इसे मराठी का आद्यलेख माना जाता है। नागरी लिपि में लिखा गया यह ताम्रपट 1060 ई. का है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) नागरी लिपि के लेख कबसे मिलने लगते हैं?
(ग) गद्यांश का सारांश प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर-
(क) पाठ-नागरी लिपि। लेखक-गुणाकर मुले।
(ख) नागरी लिपि के लेख ग्यारहवीं सदी से मिलने लगते हैं।
(ग) ग्यारहवीं सदी से नागरी लिपि में मराठी भाषा के लेख मिलने लगते हैं। शिलाहार शासक केशिदेव (प्रथम) का एक शिलालेख 1012 ई का मिला है जो है तो संस्कृत मराठी में लेकिन इसकी लिपि नागरी है। दिवे-आगर में प्राप्त ताम्रपट पूर्णतः मराठी में है। इसे मराठा का आधलेख माना जाता है। यह ताम्रपट 1060 ई. का है।

प्रश्न 9 उत्तर भारत में पहले-पहल गुर्जर-प्रतीहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। अनेक विद्वानों का मत है कि ये गुर्जर-प्रतीहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन खड़ा किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार हुए। मिहिर भोज (840-81 ई.) की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

प्रश्न-
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) उत्तर भारत में सर्वप्रथम नागरी के लेख किनके शासन-काल में मिलते हैं ?
(ग) किस गुर्जर-प्रतीहार की प्रशस्ति नागरी लिपि में है ?

उत्तर-
(क) पाठ-नागरी लिपि। लेखक-गुणाकर मुले।
(ख) उत्तर भारत में पहले-पहले गुर्जर-प्रतीहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। ईसा की आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती में और तत्पश्चात् कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था।
(ग) गुर्जर-प्रतीहार राजा मिहिर भोज (840-81 ई०) ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें –

प्रश्न 1.गुणाकर मूले किस निबंध के रचयिता हैं
(क) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(ख) नागरी लिपि
(ग) परंपरा का मूल्यांकन
(घ). आविन्यों
उत्तर- (ख) नागरी लिपि

प्रश्न 2. देवनागरी लिपि में मुद्रण के टाइप कब बने ?
(क) दो सदी पहले
(ख) दो दशक पहले
(ग) बीसवीं सदी में
(घ) 11वीं सदी में
उत्तर- (क) दो सदी पहले

प्रश्न 3. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी?
(क) पन्द्रहवीं सदी में
(ख) ईसा पूर्व काल में
(ग) 8वीं-11वीं सदी में
(घ) कभी नहीं
उत्तर-(ग) 8वीं-11वीं सदी में

प्रश्न 4. पहले दक्षिण भारत की नागरी लिपि क्या कहलाती थी?
(क) नंदिनागरी
(ख) कोंकणी
(ग) ब्राह्मी
(घ) सिद्धम
उत्तर- (घ) सिद्धम

प्रश्न 5. हिन्दी के आदिकवि का नाम क्या था?
(क) विद्यापति
(ख) सरहपाद
(ग) कबीर
(घ) दैतिदुर्ग
उत्तर-
(ख) सरहपाद रिक्त स्थानों की पूर्ति

प्रश्न 1. हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ………..लिपि में लिखी जाती हैं।
उत्तर- देवनागरी

प्रश्न 2. अकबर के एक सिक्के में देवनागरी में……..अंकित है।
उत्तर- रामसीय

प्रश्न 3. चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम…………..था।
उत्तर- देव

प्रश्न 4. विजयनगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को…………….कहा है।
उत्तर-नंदिनागरी

प्रश्न 5.नागरी के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के…………………से ही मिलते हैं
उत्तर- दक्कन प्रदेश

प्रश्न 6.
बेलग्रोल में………….का भव्य पुतला खड़ा है।
उत्तर- गोमटेश्वर

प्रश्न 7. परमार शासक भोज अपने…………………..के लिए प्रसिद्ध हैं।
उत्तर- विद्यानुसग

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में पोधियाँ कुछ समय पहले तक किस लिपि में लिखी जाती थीं?
उत्तर- दक्षिण भारत में कुछ समय पहले तक पोथियाँ नागरी लिपि में लिखी जाती थीं।

प्रश्न 2.पुरन काल की लिपि क्या थी?
उत्तर- गुप्त काल की लिपि ब्राह्मी लिपि थी।

प्रश्न 3. बादशाह अकबर के सिक्कों पर कौन सी आकृति तथा कौन सा शब्द अंकित था ?
उत्तर- बादशाह अकबर के सिक्कों पर “राम-सीता” की आकृति और नागरी लिपि में रामसीय शब्द अंकित था।

प्रश्न 4.राष्ट्रकूट शासक मूलतः कहाँ के रहने वाले थे तथा इनकी मातृभाषा क्या थी
उत्तर- राष्ट्रकूट शासक मूलतः कर्नाटक के रहनेवाले थे तथा इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी।

प्रश्न 5. नागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता क्या है ?
उत्तर- नागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिस रूप में लिखी जाती है उसी रूप में बोली भी जाती है।

प्रश्न 6. किन-किन शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में हैं?
उत्तर- कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख देवनागरी लिपि में हैं।

प्रश्न 7. उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम किस लिपि के नाम से जानते हैं?
उत्तर- उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम देवनागरी लिपि के नाम से जानते हैं।

प्रश्न 8 महावीराचार्य कौन थे?
उत्तर- महावीराचार्य अन्निछवर्ष के जमाने के गणितज्ञ थे जिन्होंने ‘गणितसार-संग्रह’ की रचना की।

प्रश्न 9. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर- करीब दो सदी पहली बार देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं। इस प्रकार ही देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता आयी है।

प्रश्न 10. देवनागरी लिपि में कौन-कौन-सी भाषाएं लिखी जाती हैं ?
उत्तर- देवनागरी लिपि में मुख्यतः नेपाली, मराठी, संस्कृत, प्राकृत, हिंदी भाषाएं लिखी जाती हैं।

प्रश्न 11. लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है?
उत्तर- लेखक ने गुजराती, बंगला और ब्राह्मी लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।

प्रश्न 12. नागरी लिपि के आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें।
उत्तर- विद्वानों के अनुसार नागरी लिपि के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के नीचे के दक्कन प्रदेश से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 13. उत्तर भारत में किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं ?
उत्तर- विद्वानों का विचार है कि उत्तर भारत में मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि गुर्जर प्रतिहार राजाओं के अभिलेख में पहले-पहल नागरी लिपि के मेख प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 14. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी?
उत्तर- ईसा की आठवीं-ग्यारहवीं सदियों में नागरी लिपि पूरे देश में व्याप्त थी। अतः उस समय यह एक सार्वदेशिक, लिपि थी।

शब्दार्थ

  • लिपि : ध्वनियों के लिखित चिह्न
  • नागरी : नगर की, शहर की
  • अनुकरण : नकल
  • ब्राह्मी : एक प्राचीन भारतीय लिपि जिससे नागरी आदि लिपियों का विकास हुआ
  • पाथियाँ : पुस्तकें, ग्रंथ
  • टकसाल : जहाँ सिक्के ढलते हैं
  • रामसीय : राम-सीता
  • अस्तित्व : पहचान, सत्ता
  • हस्तलिपि : हाथ की लिखावट
  • आद्यलेख : अत्यंत प्राचीन प्रारंभिक लेख
  • विद्यानुराग : विद्या से प्रेम

About the author

My name is Najir Hussain, I am from West Champaran, a state of India and a district of Bihar, I am a digital marketer and coaching teacher. I have also done B.Com. I have been working in the field of digital marketing and Teaching since 2022

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